Anuranjan Jha

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About Anuranjan Jha

अनुरंजन झा
चम्पारण, बिहार के एक छोटे से गांव फुलवरिया में जन्मे अनुरंजन झा मीडिया जगत का एक जाना-पहचाना नाम हैं। पिछले 22 वर्षों से पत्रकारिता में अपनी बेबाकी और प्रयोगधर्मिता के लिए जहाँ अनुरंजन झा सराहे जाते रहे, वहीं सामाजिक भ्रष्टाचार को बेनकाब करने की वजह से विवादों में भी रहे। Investigative Journalism की दुनिया में Cobra Post के अनिरुद्ध बहल और अनुरंजन झा की जोड़ी को पूरा देश जानता है। 30 से कम की उम्र में ही India News के न्यूज डायरेक्ट बने और फिर बाद में CNEB के प्रधान संपादक और सीओओ भी।
दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास स्नातक की शिक्षा के दौरान ही देश के तमाम अखबारों-पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरु किया। बाद में IIMC से पत्रकारिता की डिग्री ली। करियर की शुरुआत जनसत्ता से हुई। फिर जी न्यूज, आजतक, बीएजी फिल्म्स होते हुए न सिर्फ इंडिया टीवी की लांचिंग टीम का हिस्सा बने बल्कि रजत शर्मा द्वारा दी गई इंडिया टीवी के पहले न्यूज बुलेटिन को प्रोड्यूस किया। देश का पहला मैट्रोमोनियल चैनल 'शगुन टीवी' को शुरू करने का श्रेय भी अनुरंजन झा को ही जाता है। वर्तमान में 'मीडिया सरकार डॉट कॉम' के संस्थापक संपादक हैं।
Political Trilogy की पहली किताब 'रामलीला मैदान' के ज़रिए अन्ना आंदोलन की असलियत बाहर लेकर आ चुके हैं। दूसरी किताब 'गाँधी-मैदान' से बिहार की राजनीति और 'कुर्सी के खेल' को खोजने की कोशिश की है । और अबकी बार 'झूम Bottle and Ballot' के ज़रिए बिहार में शराबबंदी के बाद शुरू हुए Bootlegging की एक चौंका देने वाली दुनिया दिखा रहे हैं।
शराबबंदी के बाद बिहार का अजीब हश्र हुआ। अपराध मुक्त राज्य की कल्पना शायद कल्पना ही रह गई और वापस अपराधियों का बोलबाला हो गया। इस बार पुलिस-प्रशासन और सरकार की भिड़ंत किड्नैपिंग इंडस्ट्री के माफियाओं से नहीं, Bootleggers से हो रही है। जिन लोगों ने भी ज्यॉपरे सी. वार्ड की लिखी मिनी सीरिज़ - ' Prohibition' या टेरेंस विंटर की लिखी 'Boardwalk Empire ' देखी है, वे जानते हैं कि अमेरिका में Prohibition के बाद जो क्राइम उभरा उसके क्या परिणाम हुए। ये वही दौर था जब जॉर्ज रेमुस, अल कपोन, मेयर लेस्की या उसके सहयोगी के रूप में चार्ल्स 'लकी' लुसियानो जैसे Kingpin और Bootleggers ने पूरे सरकारी तंत्र को हिला कर रख दिया और आखिरकार 1920 में लागू हुए Prohibition को 1933 में हटा दिया गया।
यह किताब बिहार को ब्राज़ील या 20's का अमेरिका न बनने देने की फिक्र में लिखी गई है। यह फिक्शन और नॉन-फिक्शन के बीच टू-फिक्शन जैसी कोई किताब है। यह एक नए बिहार को देखती है, ऐसे बिहार को जहाँ एक तरफ अपराध को रोकने की तमाम कोशिशें हैं, तो दूसरी तरफ 9 लाख लीटर से अधिक की शराब को चूहे द्वारा पीए जाने का सरकारी तर्क भी। क्राइम-फ्री स्टेट की परिकल्पना है, तो रेड-टेप ब्यूरोक्रेसी भी।
Bootlegging की जो अजूबी दुनिया ये किताब खोलती है, वैसी पहले कभी कहीं नहीं खुली, न सिनेमा में और न ही साहित्य में बिहार की पृष्ठभूमि पर लिखी गई शायद पहली पेज टर्नर किताब है. झूम : Bottle and Ballot. -संजीव के. झा

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