- New product
Achanak kabir
कवि अनवर शमीम का यह दूसरा संग्रह है, जो बहुत लंबे अंतराल के बाद आया है । उर्दू की पृष्ठभूमि वाली भाषा की ताजगी और संवेदना की अलग तरह की बनावट के कारण शमीम ने पिछली सदी के नौवें दशक में ही अपनी पहचान बना ली थी । 1999 में उनका पहला संग्रह भी आ गया था । लेकिन उस पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया । जबकि उस संग्रह में कुछ ऐसी कविताएं थीं जो अपने समय के मुश्किल सवालों से टकराते हुए कविता होने की शर्तों को भी पूरा कर रही थीं । इस संग्रह की कविताओं तक आते–आते उनका अनुभव कुछ और व्यापक हुआ है, संघर्ष कुछ और तीखा और भाषा कुछ और पारदर्शी । झारखंड जैसे पिछड़े प्रदेश के धनबाद बरवाडीह जैसे छोटे शहर और कस्बे में रहते हुए उन्होंने रेल मजदूरों, अल्पसंख्यक बस्तियों के डरे हुए लोगों और अन्य वंचित जनों के रोज“–रोज“ के जीवन संघर्षों को तो देखा ही है, ख्’ाास बात यह है कि देश–दुनिया और समय के सवालों पर भी अपनी नज“र टिकाये रखी है और उन्हें चित्रित करते हुए कहीं भी कविता के अनुशासन को भंग नहीं किया है । वे कम शब्दों में बड़ी बात करने की कला जानते हैं । ‘गिरानी में नाच’ और ‘रेलवे कालोनी’ जैसी श्रृंखला में लिखी उनकी ‘अचानक कबीर’ कविताएँ बिल्कुल नये यथार्थ को सामने लाती हैं । इस संग्रह को एक नये क्षेत्र के जीवनानुभव से साक्षात्कार के साथ–साथ भाषा को बरतने की कला के आस्वाद के लिए भी पढ़ा जाना चाहिए । -मदन कश्यप
You might also like
No Reviews found.