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Apne Apne Indradhanush

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2016
978-93-82821-60-1

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“तुम इतनी आकर्षक हो कि तुम्हारे एक नहीं अनेक प्रेमी होंगे । कितनों को फँसा रखा था तुमने इस सुन्दरता के जाल में ?’’ मेरा पति मुझे गालियाँ देता जा रहा था और मेरे संस्कार उसकी गालियों का प्रतिकार करने की इज़ाज़त नही दे रहे थे । चुपचाप सुनने पर विवश कर रहे थे । मैं इस निरर्थक व अपमानजनक प्रश्न का उत्तर दूँ भी तो क्या दूँ ?––––––कैसे दूँ––––– ? “तुम्हारी खामोशी तुम्हारी स्वीकारोक्ति प्रतीत हो रही है ।” उसने दुष्टतापूर्वक मुझ से कहा । मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा । मेरा पति मुझे दंभी, कापुरुष, बलात्कारी लगने लगा । यदि उसे मुझे पर विश्वास नहीं है तो उसने मेरे साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित क्यों किया हुआ है ? उसकी बातों व उसके बर्बर व्यवहार ने अब मुझे परिवर्तित कर दिया था, “हाँ, तुम्हंे मुझ पर–––––––अपनी व्याहता पत्नी पर विश्वास नही है तो मैं तुम्हंे कैसे समझाऊँ ? तुमने मेरे चरित्र पर हमला किया है । मुझे गाली दी है । तुम्हारा ये उच्चकुलीन परिवार व तुम, मेरी दृष्टि में निकृष्ट हो । यदि तुम्हे मेरे ऊपर विश्वास नहीं तो तुम जैसा समझते हो, मैं वैसी ही सही । ’’ मैंने भी आवेश में आ कर उत्तर दिया । (‘अपने–अपने इन्द्रधनुश’ उपन्यास से )

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