• New product

Bhagyawati

(0.00) 0 Review(s) 
2025
978-93-48409-73-7

Select Book Type

Earn 2 reward points on purchase of this book.
In stock

बहुत दिनों से इच्छा थी कि कोई ऐसी पोथी हिन्दी भाषा में लिखूँ कि जिसके पढ़ने से भारतखंड की स्त्रियों को गृहस्थ-धर्म की शिक्षा प्राप्त हो, क्योंकि यद्यपि कई स्त्रियाँ कुछ पढ़ी-लिखी तो होती हैं, परन्तु सदा अपने ही घर में बैठे रहने के कारण उनको देश-विदेश की बोलचाल और अन्य लोगों से बरत-व्यवहार की पूरी बुद्धि नहीं होती। और कई बार ऐसा भी देखने में आया कि जब कभी उनको विदेश में जाना पड़ा तो अपना गहना कपड़ा, बरतन आदि पदार्थ खो बैठीं और घर में बैठी भी किसी छली स्त्री पुरुष के बहकाने से अपने हाथ से अपने घर का नाश कर लिया। फिर यह भी देखा जाता है कि बहुत स्त्रियाँ अपनी देवरानी जेठानियों से आठों पहर लड़ाई रखतीं और सास-ससुरे और अपने भर्ता का निरादर करने लग जाती हैं। कई स्त्रियों को अपने घर के हानि-लाभ की ओर कुछ ध्यान न होने के कारण वे घर का सारा ठाठ बिगाड़ लेती हैं और कइयों के घरों को नौकर-चाकर लूट-लूट खाते हैं और उनको संयम और यत्न से कुछ काम नहीं होता। कई स्त्रियाँ विपतकाल में उदास होके अपनी लाज को बिगाड़ लेतीं और अयोग्य और अनुचित कामों से अपना पेट पालने लग जाती हैं और कई विद्या से हीन होने के कारण सारी आयु चक्की और चरखा घुमाने में समाप्त कर लेती हैं। इस कारण मैंने यह ग्रन्थ सुगम हिन्दी भाषा में लिख के इसका नाम 'भाग्यवती' रखा। इस ग्रन्थ में मैंने एक कल्पित कहानी ऐसी सरस रीति से लिखी है कि जिससे पढ़ने-हारे का मन समाप्ति पर पहुँचाये बिना तृप्त न होवे। और जो-जो व्यवहार ऊपर गिने उन सबमें शिक्षा प्राप्त होती रहे। इस सारे ग्रन्थ में नाम तो चाहे कई स्त्री-पुरुषों के आते हैं, परन्तु मुख्य प्रसंग एक 'भाग्यवती' नामक स्त्री का है जो काशी नगर में पंडित उमादत्त के घर में उत्पन्न हुई लिखी है।

You might also like

Reviews

No Reviews found.