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Bhulne Ka Rasta

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2015
978-93-82821-72-4

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ऐसे समय में जब झूठ और सच,यथार्थ और उत्तर–यथार्थ जैसी संकल्पनाओं के बीच बहुत बारीक़ फर्क बचा रह गया है,ऐसे में कहानी लेखन न सिर्फ जटिल हुआ है बल्कि हमारे इर्द–गिर्द मायावी और वायवीय दुनिया भी रचने लगा है– इन सबके बीच राजेन्द्र दानी की कहानियाँ अधिक परिपक्व और अधिक सहज हुई हैं । जटिलता को सहजता के साथ कहने की कला राजेन्द्र दानी की कहानियों को इस अविश्वसनीय और अतार्किक समय में हमारे लिए अनिवार्य बनाती हैं । ‘भूलने का रास्ता’ समाज के उस तहखाने तक हमे ले जाता है जहाँ अगर सब कुछ स्पष्ट न भी हो तो मौजूद जटिलता की शिनाख्त तो हो ही सकती है ।

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