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Chand Ka Muh Tedha Hai

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2025
978-93-48409-44-7

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नगर के बीचो-बीच आधी रात—अँधेरे की काली स्याह शिलाओं से बनी हुई भीतों और अहातों के, काँच-टुकड़े जमे हुए ऊँचे-ऊँचे कंधों पर चाँदनी की फैली हुई सँवलाई झालरें। कारख़ाना—अहाते के उस पार धूम्र मुख चिमनियों के ऊँचे-ऊँचे उद्गार—चिह्नाकार—मीनार मीनारों के बीचो-बीच चाँद का है टेढ़ा मुँह!! भयानक स्याह सन तिरपन का चाँद वह!! गगन में करफ़्यू है धरती पर चुपचाप ज़हरीली छिः थूः है!! पीपल के ख़ाली पड़े घोंसलों में पक्षियों के, पैठे हैं ख़ाली हुए कारतूस। गंजे-सिर चाँद की सँवलाई किरणों के जासूस साम-सूम नगर में धीरे-धीरे घूम-घाम नगर के कोनों के तिकोनों में छिपे हैं!! चाँद की कनखियों की कोण-गामी किरनें पीली-पीली रोशनी की, बिछाती है अँधेरे में, पट्टियाँ। देखती है नगर की ज़िंदगी का टूटा-फूटा उदास प्रसार वह।

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