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Ek Aur Noakhali
देवेन्द्र कुमार अपनी सोच मे प्रगतिशील विचारों के कहानीकार हैं । वे फैजाबाद के आस–पास के गाँवों मे साम्प्रदायिक सद्भाव के सूत्रों को खोजते, पहनाते और उन्हें जोड़ते हैं । ‘एक और नोआखली’ गैर साम्प्रदायिक निखालस मनुष्यता की बेजोड़़ कहानी है । वे दलित सवर्ण प्रश्न को मौजूदा दलित विमर्श से भिन्न नजरिए से देखते हैं । दलित सवर्ण समाज के पुरुष प्रधान चरित्र उसमें स्त्री मात्र की सामाजिक नियति और परस्पर जटिल सम्बन्धों की नब्ज को पहचानते और पकड़ते हैं । ‘उड़द’ इसी संदर्भ को उजागर करने वाली बेमिशाल कहानी है । इसी प्रकार ‘पी–डी–के का तीसरा ख्वाब’ अमरकांत की प्रसिद्ध कहानी डिप्टी कलक्टरी’ और ‘मरिहैं संसारा’ कमलेश्वर की चर्चित कहानी ‘दिल्ली मे एक मौत’ से भिन्न उनके उत्तर आधुनिक चरित्र का साक्षात्कार कराते हुए उनकी भावभूमि को आगे बढ़ाती है । बटलोई, श्रद्धांजलि, घात, महुये का पेड़, चाह, धोखा आदि कहानियाँ अपनी वस्तु और कथा कथक मे बासी नही हैं । भाषा का फैजाबादी लहजा देवेन्द्र की कहानियों को और जीवन्त बनाता है । देवेन्द्र कुमार से आगे और भी स्तरीय कहानियों की उम्मीद की जा सकती है ।
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