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Humkadam Hai Zindagi

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2023
978-93-92380-57-0

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आज किसी भी बात पर हँसते डर लगता है । हँसी की आवाज़ भयानक लगती है, प्रसंगहीन भी! विदेशों से आती खबरें डरा रही हैं । वहाँ मृत्यु दर बढ़ती जा रही है, क्योंकि कोरोनावायरस मानव पर हावी है । हम नहीं चाहते कि यही हाल हमारे देश में हो । पूरे देश की बात करें या अपने सूर्यकिरण को देखें । डर तो हर जगह है । अभी दुनिया में कोई भी कोरोना का सटीक उपचार नहीं जानता । हम खुद अंधेरे में तीर चलाते हुए कभी आयुर्वेदिक, तो कभी एलोपैथी का इस्तेमाल करते हुए उपचार कर रहे हैं । हम नहीं जानते कि दवाइयाँ मरीजों को फायदा कर रही हैं या हमारे मीठे बोल! हमारी सांत्वना उन्हें लड़ने की ताकत दे रही है या हमारी हौसला आफ़ज़ाई! कोई अदृश्य शक्ति उन्हें सुरक्षित रख रही है या उनके अंदर की ताकत, नहीं पता! पर हम चिकित्साकर्मी और मरीज कोरोनावायरस से पूरी ताकत से लड़ रहे हैं । कोरोना को जीतने नहीं दे रहे । हम केस बिगड़ने पर दु%खी होते हैं, मरीज के स्वस्थ होने पर उमंगित । मानो हम डॉक्टर नहीं, मरीज के परिजन हैं । डॉक्टर और मरीज एक परिवार बन गए हैं । दोनों का शत्रु एक ही हैµकोरोना! मरीज शारीरिक–मानसिक कष्ट झेल रहे हैं, चिकित्सक भी । मरीज और चिकित्सक के जुड़ाव की कितनी ही कहानियाँ बन गयी हैं । सच्ची कहानियाँ । अंकल–आंटी क्या कभी भुलाए जा सकते हैं ? लगभग अस्सी वर्ष के दो बुजुर्ग पति–पत्नी! अप्रैल के अंत में हमारे हॉस्पिटल में आए । दोनों कोरोना पॉज़िटिव । जिद्दी पत्नी । अक्खड़ पति ।

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