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Jainendra Kumar Ke Katha Sahitya Ka Manovaigyanik Pehlu

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2017
978-93-82554-82-0

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जैनेन्द्र जैसे साहित्यकारों ने मनोवैज्ञानिक तत्त्वों के आधार पर मनोवृत्तियों की विवेचना कथा के माध्यम से की । पात्रों की मानसिकता मुख्य रूप से चर्चित की गयी । कथापात्रों के अन्तर्द्वंद्वअनावृत्त हुए । पात्रों के भावों के उत्थान और पतन को तथा उनकी मानसिक प्रक्रिया को पाठकों के सामने रखना ही उपन्यास में मनोवैज्ञानिकता कहलाती है । डॉ– देवराज उपाध्याय ने स्पष्ट किया हैµ“उपन्यास का वह अंश जहाँ घटना के मूल में पैठकर उनके मानसिक कारणों की व्याख्या की गयी हो अथवा उसके द्वारा उत्पन्न मानसिक क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया गया हो, मनोवैज्ञानिक ही कहा जायेगा ।”

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