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Katora Bhar Khoon
इस कैदखाने के दरवाजे पर पचास सिपाहियों का पहरा पड़ा करता था। नीचे उतरकर तहखाने में जाने के लिए पाँच मजबूत दरवाजे थे और हर एक दरवाजे में मजबूत ताला लगा रहता था। इस तहखाने में न मालूम कितने कैदी सिसक-सिसक कर मर चुके थे। आज बेचारे बीरसिंह को भी हम इसी भयानक तहखाने में देखते हैं। इस समय इनकी अवस्था बहुत ही नाजुक हो रही है। अपनी बेकसूरी के साथ ही साथ बेचारी तारा की जुदाई का गम और उसके मिलने की नाउम्मीदी इन्हें मौत का पैगाम दे रही है। इसके अतिरिक्त न मालूम और कैसे-कैसे खयालात इनके दिल में काँटे की तरह खटक रहे हैं। तहखाना बिलकुल अन्धकारमय है, हाथ को हाथ नहीं सूझता और यह भी नहीं मालूम होता कि दरवाजा किस तरफ है और दीवार कहाँ है? --इसी उपन्यास से
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