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Kunal Benarji Ki Corona-Diary
पच्चीस मार्च से पूरे भारत में तीन हफ़्ते का लॉकडाउन लागू हो गया । कोरोना वायरस से डरे हुए लोग घरों में कैद हो गए । घरेलू कामों और बातों के अलावा टी वी, मोबाइल, इंटरनेट, ई–मेल, वाट्सैप, ट्विटर, फ’ेसबुक आदि–आदि के सहारे समय बीतने लगा । फ’ेक न्यूज़ और बुरी ख़बरों से उत्पन्न सनसनी के साथ–साथ उपदेशों, अफ’वाहों और चुटकुलों का सैलाब आ गया । भले घरों में पार्ट–टाइम ही नहीं, फ’ुलटाइम रखी गर्इं कामवाली बाइयाँ भी गायब हो गर्इं । अपने–अपने घर का सारा काम परिवार–जनों की, खासकर महिलाओं की ज़िम्मेदारी बन गया । नवंबर में चुपके–चुपके चीन में शुरू हुआ कोरोना–संकट फ’रवरी में पूरा प्रकट होकर दुनिया–भर के अलग–अलग क्षेत्रों–देशों में प्रसार पाने लगा । मार्च–अप्रैल आते–आते तो यमराज भी यहाँ से वहाँ दौड़ते–दौड़ते हाँफ उठा । एक पैर एशिया में तो दूसरा यूरोप में । वह अमेरिका के न्यूयॉर्क भी पहुँचा और अतिव्यस्तता से इतना हड़बड़ा गया कि उसकी अपनी साँस अटकने लगी । दूसरी ओर, भारत में हम लोग घरों में बंद होने के कारण निकम्मे–से होते जा रहे थे । घर पर रहकर इंटरनेट के सहारे चलने वाली ऑनलाइन नौकरी करना भारी हो चला था । रविवार नामक जिस वार का इंतज़ार रहता था, वह बाकी छहों वारों को निगलकर सुरसा जैसा रूप धारण करता जा रहा था । तिथियों, वारों और नक्षत्रों की गति की गणना पूरी तरह गड़बड़ा गई थी । हमारा और पूरी दुनिया का भविष्य अनिश्चितताओं के गहरे अंधेरों में घिरता–छिपता जा रहा था । सामूहिक भय और आशंकाओं ने हर दिल–दिमाग में पक्का डेरा डाल लिया था । इसी उपन्यास से
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