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Nepathya Ke Nayak

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2014
978-93-82821-40-3

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‘नेपथ्य’ रंगमंच का वह स्थान है, जहाँ से वेषभूषा के साथ पात्र रूप रचकर मंच पर आते हैं––– अपनी भूमिका निभाते हैं । कभी–कभी नेपथ्य से वह बात भी कही जाती है जो पात्र नहीं बोलते, और जरूरी है । ‘नेपथ्य–––’ उपन्यास की विषय–वस्तु को यदि एक ही शब्द में समेटें तो वह है – जिजीविषा! एक जाति की––– एक देस की । जाति मारवाड़ी, विनय, साहस और स्वाभिमान का जटिल संवलन । जो वैसे तो रत्ती–रत्ती जोड़े पर देस पर आ पड़े तो पीढ़ियों की कमाई, जमापूँजी एक झटके में, सही हाथों को सोंपकर ‘भामाशाह’ हो जाए । बात यह कि –‘ बानियों के बेटे भीख तो नहीं माँग सकें । बनियाँ तो दुनियाँ में माया के पीछे ही पूज्या जावे है ।’

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