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Pani Per Lakeer

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पंचायती राज का आगाज हो चुका था । तैंतीस प्रतिशत महिला आरक्षण भी हो चुका था । अब 50 प्रतिशत की ओर महिलाओं के कदम बढ़ गये थे । पहली बार चुन कर आयी सरपंच, पंच लोगों के साथ समागम में निकट के एक गाँव में मैं बुलाई गई थी । औरतें गज भर घूँघट में थीं । उनके पति, पिता, भाई या पुत्र साथ आये थे । अनेक कोशिशों के बावजूद घूँघट नहीं उठा था । हम थोड़े से निराश हो गये थे । दो साल बाद के सहमिलन में देखा कि घूँघट कम है । दूसरे चुनाव के आते–न–आते स्थिति में सुधार आ गया था । लेकिन फिर भी वे अपने पति को कहीं भी ले जातीं, उन्हीं के कहने से अँगूठा लगातीं । यह हाल तब था जब देश आजादी की स्वर्ण जयंती मना लिया था । साक्षरता मिशन भी चल रहा था । परंतु उसी बीच में यह सुगबुगाहट भी थी कि सारी बातें वे ससुर या पति की नहीं सुनेंगी । उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा था । परंतु कुछ अड़ियल स्त्रियों ने हिम्मत न हारी । वे ही शनै%–शनै% रास्ता बना रही हैं । उस पानी वाले क्षेत्र में ये एक लकीर खींचने की कोशिश तो कर रही हैं, पानी पर कोई लकीर नहीं टिकती पर जब बाढ़ का पानी चला जायेगा ये ही ठोस /ारती पर जो लकीर खींचेंगी वह जरूर दीखेगी । आहिस्ता–आहिस्ता वे अपने को पहचानने लगी हैं । कथा के विस्तार में तीन युवतियाँ हैं जिनके सामने तीन अलग–अलग प्रकार की समस्या आती हैं । तीनों स्कूल की साथी हैं । एक–दूसरे को साथ देकर अपना तथा अपने इलाके की स्त्रियों के लकीर खींचने में मदद करती हैं । तभी तो गांधी का पंचायती राज का सपना सफल होगा । गांव ग्राम–स्वराज की ओर अग्रसर होंगे । -उषाकिरण खान

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