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Pranay Gatha

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2016
978-93-81997-99-4

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मेवाड़ की राजरानी भक्त शिरोमणि मीरा की प्रणय गाथा जनमानस की अनमोल धरोहर है । मीरा के सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक आदि पक्ष का पहली बार उद्घाटन हो रहा है । मीरा ने श्याम साँवरे को ढूँढते–ढूँढते वृन्दावन–ब्रजभूमि की चप्पा–चप्पा जगह ढूँढ़ डाली । उसमें अनेक उतार–चढ़ाव का अनुभव किया । वह राधा नहीं थी, न रुक्मिणी, सत्या, भद्रा, कालिन्दी आदि । वह इस विश्वास के साथ आयी थीं क्योंकि कृष्ण ने कहा थाµवृन्दावन परित्यज्य नैव गच्छाम्यहमक्वचित । परन्तु उन्होंने तो वृन्दावन–ब्रज को छोड़ने के बाद उसकी ओर स्वप्न में भी नहीं देखा । तो उन्हें मीरा वहाँ खोजने गयी तो क्यों ? क्यों न वह सीधे द्वारिका पहुँच गयी ? क्या मीरा पहली ऐसा महिला थी जिन्होंने स्त्री–विमर्श की नींव रखी थी ? कैसे वह अकेली मध्यकालीन जंग खायी परम्पराओं को तोड़कर नई स्वस्थ परम्पराओं का संकेत दे सकीं ? मीरा का एकान्त क्या था ? उनकी अर्चना–पूजा क्या थी ? क्या वे समाज केन्द्रित भी थी ? इस प्रकार अनेकानेक प्रश्नों को अपने कलेवर में संजोये यह कृति उनके लिए आपको भी आमन्त्रित करती है ।

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