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Ratnare Nayan

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978-93-92380-15-0

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रतनारे नयन पटना की अधिष्ठात्री देवी परन देवी हैं । वे ही हजारों साल से देखती आई हैं इस नगर को । बारंबार बसते, उजड़ते । यह शहर बसता ही रहा है, उजड़ा कभी नहीं । यह सच है कि राजतंत्र की जन्मदात्री नगरी जिसने संपूर्ण भारत पर अखंड राज किया वह कालांतर में अपना दर्जा अपनी अवस्थिति बरकरार नहीं रख सकी । परंतु उससे कोई विशेष फर्क न पड़ा । इस भूमि पर भारत और विदेश से लोग आकर स्थापित होते रहे । यह बाहें फैलाकर सुस्वागतम् कहने को तैयारी रहता है । ग्रीक हेलेना हो कि सिंहली तिष्यरक्षिता सबका । आजाद पटना विद्रोह को जन्म देता रहा । युवकों की पूरी फौज परिवर्तन के लिए तैयार रहती है । लेकिन यह बहुत सारी उपलब्धियाँ अपने नाम करके भी खाली हाथ रह जाता है । कथा का अंत होता है सन् 2000 के आम चुनाव की पूर्व संध्या पर । चुनाव का भ्रष्ट होता स्वप्न झेल रहा है पटना । पटना यानी संपूर्ण बिहार और उसे देख रही हैं पटन देवी । जे–पी– के अनन्य सहयोगी आचार्य राममूर्ति ने वैसे ही समय स्त्रियों की शांति सेना गठित की थी । किसी प्रखर पत्रकार के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था कि अगली सदी स्त्रियों की होगी । शांति सेना इनकी तो क्रांति सेना भी इन्हीं की होगी । आज इक्कीसवीं सदी के इक्कीस साल बीत गए, आचार्य राममूर्ति जी का यह कथन पूर्णत% सत्य हुआ । जाने कब से देख रही हैं अहर्तिश जागती वे रतनारी आँखें जो योग क्षेम की आकांक्षी हैं, जाने कब तक देखती रहेंगी । -उषाकिरण खान

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