• New product

Shrikanth

(0.00) 0 Review(s) 
2020

Select Book Type

Earn 7 reward points on purchase of this book.
In stock

साहस की इतनी परीक्षाएँ पास करने के उपरान्त अन्त में यहाँ आकर फेल हो जाने की मेरी बिलकुल इच्छा नहीं थीय और खास करके मनुष्य की इस किशोर अवस्था में, जिसके समान महा–विस्मयकारी वस्तु संसार में शायद और कोई नहीं है । एक तो वैसे ही मनुष्य की मानसिक गतिविधि बहुत ही दुर्जेय होती हैय और फिर किशोर–किशोरी के मन का भाव तो, मैं समझता हूँ, बिलकुल ही अज्ञेय है । इसीलिए शायद, श्रीवृन्दावन के उन किशोर–किशोरी की किशोरलीला चिरकाल से ऐसे रहस्य से आच्छादित चली आती है । बुद्धि के द्वारा ग्राह्य न कर सकने के कारण किसी ने उसे कहा, ‘अच्छी’ किसी ने कहा, ‘बुरी’ किसी ने ‘नीति’ की दुहाई दी, किसी ने ‘रुचि’ की और किसी ने कोई भी बात न सुनी वे तर्क–वितर्क के समस्त घेरों का उल्लघंन कर बाहर हो गये । जो बाहर हो गये, वे डूब गये, पागल हो गये और नाचकर, रोकर, गाकर एकाकार करके संसार को उन्होंने मानो एक पागलखाना बना छोड़ा । तब, जिन लोगों ने ‘बुरी’ कहकर गालियाँ दी थीं उन्होंने भी कहा किµऔर चाहे जो हो किन्तु, ऐसा रस का झरना और कहीं नहीं है ।

You might also like

Reviews

No Reviews found.