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Vasundhra

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2017
978-93-85450-93-8

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वसुंधरा में मेरे दो उपन्यास हैं । 'धात्री' और 'अपराजिता' । पहले का लेखन वैश्विक पूँजीवाद के उद्दाम स्वैराचार का खेल शुरू होने से पहले हुआ । दूसरे का इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में, जब मनुष्य जाति की सबसे बड़ी समस्या हवा और पानी की उपलब्धता हो गयी है । पृथ्वी पर जीवन को आकार-प्रकार देने वाले पदार्थ 'छिति, जल, पावक, गगन समीर' अनन्तकाल से उसी मात्रा में विद्यमान हैं, केवल उनके रूप, आकार और स्थान में परिवर्तन होता रहता है । विज्ञान, तकनीकी और लोभ के अपवित्र गठबन्धन ने मनुष्य की उद्दाम भोग-लालसा को सुरसा के मुख की तरह बढ़ा दिया है । धरती और धात्री का दोहन और शोषण आक्रामता की सीमाएँ पार कर रहा है । दोनों को बचाए रखकर ही प्राणिमात्र को बचाने की सम्भावना बचेगी । दोनों कथाएँ अलग-अलग भी पढ़ी जा सकती हैं और एक को दूसरी से जोड़कर भी । 'धात्री' विज्ञान की शक्ति के साथ चेतना के सुयोग की कथा है और 'अपराजिता' स्त्री के अपराजेय तेजस्वी रूप की गाथा । -रामदेव शुक्ल

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