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Vikas Ka Roopak
"जब भी कोई धर्म, संस्कृति, समुदाय अपने पहचान की राजनीति और विचारधारा की दृष्टि से अपने देश के इतिहास को मिथ और 'इमेजिनरी पास्ट' में बदल उसे नेशनल एक्सक्लूसिवनेस, 'नेशनल सुपरिवारिटी और 'नेशनल शोवनिज्म' का स्वरूप देने की कोशिश करता है, तव वह दूसरे धमों, संस्कृतियों और पहचानों को ध्यान में रखकर, उनके प्रति हिकारत के भाव से ही ऐसा करता है और अन्ततः 'फाइनल सॉल्यूशन ऑफ ज्यूज प्रॉब्लम' की तरफ बढ़ जाता है। नाजियों की नस्लीव श्रेष्ठता किसी से छिपी नहीं है। बहूदी धर्म, संस्कृति और पहचान विरोधी इतिहास-दृष्टि के कारण ही नाजियों ने सात लाख से ज्यादा यहूदियों का कत्लेआम किया था। नाज़ी यहूदी, अफ्रीकी, एशियाई मूल के लोगों जिनमें भारतीय भी शामिल हैं-को निकृष्ट प्रजातियों के रूप में देखते थे। क्या यह समय की विडम्वना नहीं है कि दुनिया आज तक जिन यहूदियों के कत्लेआम की त्रासदी का मातम मनाती रही है, आज वही यहूदी नाजियों से भी वर्वर तरीके से फिलिस्तीनियों का कत्लेआम कर रहे हैं और दुनिया तमाशवीन वनी हुई है। इतिहास, राजनीति, ज्ञान या विचार की कोई भी दृष्टि इस मानवीय अपराध को जायज नहीं ठहरा सकती। फिर इस किये जा रहे अपराध की कोई सजा है या नहीं? यह ताकत द्वारा किया गया अन्याय है, तो फिर न्याय का क्या अर्थ रह जाता है? क्या न्याय और अन्याय भी ताकत का ही खेल है? इस ताकत और अन्याय के आईने में सभ्य देशों को अपना चेहरा अवश्य देखना चाहिए, तभी सभ्यता के चेहरों पर ताकत और अन्याय से उपजी हिंसा के खून के छींटों को, वे नजदीक से महसूस कर सकेंगे, पर तमाम अपराध-वोध के वावजूद, नैतिक रूप से वे पोंछें नहीं जा सकेंगे।
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