Dhirenkrishna Devburman & Trans. Ranjit Saha

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About Dhirenkrishna Devburman & Trans. Ranjit Saha

धीरेनकृष्ण देववर्मन :
(1902-1995) ने अपने से वरिष्ठ और समकालीन कलाकारों से कला के गुर प्राप्त किए थे। कलागुरु नंदलाल वसु तो सबके प्रेरणा स्रोत ही थे। धीरेनकृष्ण वाद में उनके सहयोगी के नाते कला भवन (शांतिनिकेतन) में लंबे समय तक कला शिक्षा प्रदान करते रहे। धीरेनकृष्ण के आग्रह पर ही विनोद बिहारी मुखर्जी का प्रवेश कला भवन में संभव हो पाया था। बाद में दोनों ने एक साथ कला का अध्ययन किया और फिर अध्यापन भी। अपने एक और सहयोगी से असित कुमार हालदार से उन्होंने विषय-वस्तु के संयोजन एवं रंगों के अनुयोग की प्रविधि सीखी थी। इन सब बातों से उनकी कला संबंधी जिज्ञासा का पता चलता है।
धीरेनकृष्ण पर जापानी कला शैली का प्रभाव था, जो उनके स्थिर चित्रण ( still life) में देखा जा सकता है। उनके 'बुद्ध और सुजाता', 'राधा' आदि चित्रों में, और प्रकृति तथा परिवेश के चित्रण में रंगों की सीम्यता के साथ पानगत मनोभाव का सूक्ष्म अंकन लक्ष्य किया जा सकता है। शांतिनिकेतन की विशिष्ट कला शैली के प्रमुख स्तंभ के नाते उन्होंने कला शिक्षण के साथ, अन्यान्य कलाकारों की तरह, प्रस्तावित अनुबंधों के अंतर्गत कई कलात्मक दायित्व पूरे किए। रवींद्रनाथ के चित्रकार मित्र विलियम रोथेन्स्टाइन के अधीन 1929 में एल्डविच, लंदन के इंडिया हाउस के एक कक्ष में, भित्ति-चित्र उकेरे । वर्ष 1927 में रवींद्रनाथ के साथ यूरोप और पूर्व-एशियाई देशों, यथा जावा, बाली, सुमात्रा आदि की यात्रा के दौरान उन्हें उन देशों की चित्रकला और शिल्पकला के साथ परंपरागत दस्तकारी से भी परिचित होने का अवसर मिला।
धीरेनकृष्ण ने 1954 में टोकियो, जापान में यूनेस्को प्रायोजित 'आर्ट एंड क्राफ्ट्स' विचार गोष्ठी में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। कलकत्ता, मुंबई, दिल्ली समेत भारत के कई प्रमुख नगरों में आयोजित चित्र प्रदर्शनियों में उनके चित्र प्रदर्शित एवं पुरस्कृत होते रहे। वर्ष 1911 में आश्रम विद्यालय से आरंभ कर कला भवन में 1919-1928 तक कला अध्येता और फिर कला भवन के अध्यापक एवं अध्यक्ष (1951-1968) रहते हुए, उन्होंने समस्त संस्थागत दायित्वों का अनुपालन किया। शांतिनिकेतन में ही चित्रांकन के साथ लेखन कार्य करते हुए, उनके जीवन का अवसान हुआ।


डॉ. रणजीत साहा :
हिन्दी के सुपरिचित विद्वान डॉ. रणजीत साहा (जन्म 21 जुलाई, 1916) विश्वभारती, शान्तिनिकेतन से पी-एच.डी. प्राप्त हैं। आपने तुलनात्मक साहित्य एवं ललित कला अधिकाय में भी उपाधियाँ अर्जित कीं। भागलपुर, शान्ति-
निकेतन एवं दिल्ली विश्वविद्यालयों में शोध-संबंधी परियोजनाओं तथा अध्यापन से जुड़े रहने के उपरान्त आप दो दशकों तक साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के उपसचिव रहे भारतीय भाषा केन्द्र, जवाहरलाल नेहरू वि.वि. से सेवामुक्त डॉ. रणजीत साहा की मौलिक लेखन के अलावा, अनुवाद के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान है।
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साधन विमर्श एवं
आपकी लगभग तीन दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हैं, जिनमें grata के प्रतिमान, सहज सिद्ध चर्यागीति विमर्श (दो खंडों में प्रकाशित
समालोचना), अमृत वाड्मय विमर्श,
राय, किरंतन, महामति प्राणनाथ रवीन्द्रनाथ की कलासृष्टि, रवीन्द्र मनीषा, आधुनिक भारतीय चित्रकला की रचनात्मक अनन्यता आदि विशेष उल्लेख्य हैं। समकालीन रोमानियाई कविता का विशिष्ट संकलन संच लेता है आकार (साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित) तथा रोमानिया में मेरी दुनिया (यात्रा डायरी) को पाठकों ने काफ़ी सराहा है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की गीतांजलि समेत आपने उनकी कई साहित्यिक कृतियों का हिन्दी में अनुवाद किया है।
अमरीका, रूस, इंगलैंड, रोमानिया, बुल्गारिया, जापान, मॉरीशस एवं नेपाल की विभिन्न साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके डॉ. साहा सेतुबन्ध पुरस्कार, अन्तर्राष्ट्रीय इण्डो- रसियन लिटरेरी सम्मान, निखिल भारत बंग साहित्य सम्मान, दिनकर पुरस्कार, हिन्दी-उर्दू लिटररी अवार्ड तथा काकासाहेब कालेलकर सम्मान एवं विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान (म.गाँ. अ.हि.वि.वि.) से अलंकृत हैं।
सम्पर्क : एम.जी. 1/26, विकासपुरी नई दिल्ली-110018 मो.: 9811262257
ई-मेल: drsaharanjit@gmail.com

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