Harnandan Prasad Saxena 'Aamil' Busalpuri

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About Harnandan Prasad Saxena 'Aamil' Busalpuri

‘आमिल’ नाम के इस शायर ने पहली नज्म तब लिखी थी, जब वे दर्जा 5 के छात्र थे । उनके स्कूल में श्री द्वारकाप्रसाद जहानाबादी हेडमास्टर थे, जो मशहूर शायर श्री दुर्गासहाय ‘सुरूर’ के सगे चाचा थे । शायरी का जो अंकुर उनकी देख–रेख में इस उम्र में फूटा, वह फैलता और फूलता चला गया । परसिया जैसे छोटे गाँव के रहने वाले हरनन्दन प्रसाद कब और कैसे ‘आमिल’ बन गए, यह किसी को क्या पता । यह तखल्लुस तो उन्हें ताऊ ने दिया था, जिन्हें शायरी का उनका पहला उस्ताद कहा जा सकता है । आगे चलकर इसी ‘आमिल’ को एस– आर– एम– इण्टर कालेज के प्रिंसिपल श्री सुरेशचन्द्र प्यार से ‘गालिब’ कहकर पुकारने लगे । ‘आमिल’ साहब को मैं संवेदना का शायर कहता हूँ । शुरुआती दिनों में ही जब वे पढ़ाई के लिये अपना गाँव छोड़कर चले तो उस जुदाई से मुतास्सिर होकर उन्होंने कहा थाµरहकर भी हम वतन में रहे यूँ वतन से दूर खुशबू चमन की रहती है जैसे चमन से दूर हम परसिया से इस तरह ‘आमिल’ हुए जुदा होती है जैसे रूह निकलकर बदन से दूर आगे की शिक्षा के लिये वे आँवला पहुँचे तो किसी परिन्दे ने गोया खुले आसमान में उड़ान भरी । वहीं रहते हुए देवबन्द के मुशायरे में एक नज़्म पढ़ी । खूब प्रशंसा हुई ।

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