Hasam Turabi

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About Hasam Turabi

हशम तुराबी
बनारस के जुलाहा परिवार में 12 मार्च 1976 को जन्मे बालक, मोहर्रम अली उर्फ हशम तुराबी ने अपने परिवार को गरीबी की मार से बिखरते देखा, नियति ने उस बालक के लिये परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बुनकारी तै कर दी। गरीबी को ताकत बना कर एक नया संघर्ष शुरू हुआ। घर में दीनी तालीम के चलते अरबी भाषा से परिचय हुआ, साथ ही उर्दू को भी अनायास मेधा में बसा लिया। बुनाई करते समय ट्रानजिस्टर पर बाँचे गए समाचार (हिन्दी तथा उर्दू
भाषाओं में) बाहर की दुनिया की विस्तृत जानकारी देते रहे। ऑल इन्डिया रेडियो, बीबीसी की उर्दू सर्विस ने हर पल ही बालक से तरुण होते इस ज्ञान पिपासु हृदय को अत्यंत सहारा दिया। शायरों और उनकी शायरी से परिचय मुशायरों, कुसीदा खूबानी की महफ़िलों को करीब से सुन कर होता रहा। फिर शुरू हुआ अन्जुमनों के लिये लिखना और काव्य स्पर्धाओं में भागीदारी करना, किताब हो या गुणी लेखक, जो भी मिला - यह उदीयमान व्यक्तित्व ज्ञान को ही खोजता तथा आत्मसात करता रहा। मौका आया मुशायरों से जुड़ने और उसमें अपनी रचनाओं को सुनाने का जहाँ पारखी लोगों ने हशम तुराबी को पहचाना तथा आकाशवाणी और दूरदर्शन (वाराणसी तथा लखनऊ) से निमंत्रण मिलने लगे । प्रकाशित पुस्तकें : कहकशाँ (2003) ख़याल अपना (2021) एहसास की आवाज़ (2023) अश' आर बुने हैं (2025) हशम तुराबी ने एक पोर्टेबल बनारसी हैंडलूम मशीन का अविष्कार भी किया है। ये कला के साथ वैज्ञानिक सोच के मिश्रण का नायाब उदाहरण है। इसका पेटेंट है और भारत सरकार के साइन्स तथा टेक्नोलॉजी विभाग की ओर से सन 2013-14 में विशिष्ट TIFAC AWARDS से सम्मानित है। हशम, कलम को या बनारसी बुनाई और बुनकर के सपनों को धार देते रहते हैं। मानव सेवा तथा देशभक्ति का जज़्बा उन्हें आगे बढ़ने का हौसला देता है, जिसकी गवाह हैं उनकी ये पंक्तियाँ-
है फ़रिश्ता वो जो सबको साथ लेकर चल रहा, एकता अच्छी नहीं लगती जिसे शैतान है।
हुस्न
में शोहरत में दोनों का नहीं कोई जवाब, आसमाँ पर चाँद है धरती पे हिन्दुस्तान है ।

Books by the Author Hasam Turabi