Kailash Banwasi

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About Kailash Banwasi

जन्म: 10 मार्च 1965, दुर्ग
शिक्षा: बी.एस-सी. (गणित), एम.ए. (अँग्रेजी साहित्य), बी.एड.
कृतियाँ: अस्सी से भी अधिक कहानियाँ देश की
कैलाश बनवासी
विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित । कहानी संग्रह: 'लक्ष्य तथा अन्य कहानियाँ' (1993), 'बाजार में रामधन' (2004) तथा 'पीले कागज की उजली इबारत' (2008), 'प्रकोप तथा अन्य कहानियाँ (2015), 'जादू टूटता है' (2019), 'कविता पेंटिंग पेड़ कुछ नहीं' (2020) 'दस कहानियां' (2021) 'हवा बहुत तेज हैं' (2025)। उपन्यास 'लौटना नहीं है' (2014) 'रंग तेरा मेरे आगे' (2022) प्रकाशित ।
समकालीन सिनेमा पर विचार 'सिनेमा भीतर सिनेमा' (2022)
कहानियाँ गुजराती, पंजाबी, मराठी, बांग्ला, मलयालम तथा अँग्रेजी में अनूदित तया कहानी-संग्रह 'बाजार में रामधन' मराठी में अनूदित। कहानी 'बाज़ार में रामधन' केरल, वर्धा, गोवा, और शोलापुर विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल ।
पुरस्कार : कहानी 'कुकरा-कथा' को पत्रिका 'कहानियाँ मासिक चयन' (संपादक-सत्येन कुमार) द्वारा 1987 का सर्वश्रेष्ठ युवा लेखन पुरस्कार। कहानी संग्रह 'लक्ष्य तथा अन्य कहानियाँ' को जनवादी लेखक संघ इंदौर द्वारा प्रथम 'श्याम व्यास पुरस्कार'। दैनिक भास्कर द्वारा आयोजित कथा प्रतियोगिता 'रचना पर्व' (2002) में कहानी 'एक गाँव फूलझर' को तृतीय पुरस्कार। संग्रह 'पीले कागज की उजली इबारत' के लिए 2010 में प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान। वर्ष 2014 में वनमाली कथा सम्मान, गायत्री कथा सम्मान 2016
संप्रति : अध्यापन ।
संपर्क : 41, मुखर्जी नगर, सिकोला भाठा, दुर्ग, (छ.ग.) 491001

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