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Thugs of Hindustan
और सारी आठवीं कक्षा ठहाकों में जैसे नाचने लगी-हा-हा-हा! हो-हो-हो! ही-ही-ही...! मैं भीतर ही भीतर चोट खाए साँप की तिलमिलाहट से भर गया। मन जाने कैसा होने लगा था। इच्छा हो रही थी, धँस जाऊँ इस कमरे के ज़मीन के भीतर... बहुत भीतर... जहाँ ये ठहाके मेरा पीछा न कर सके। पर महसूस हुआ, चाहे पाताल ही में क्यों न धँस जाऊँ, ये मेरा पीछा नहीं छोड़ेंगे। सब छात्र मुझी पर खिलखिला रहे हैं। मैं सोचता हूँ, क्या सच बोलने पर ऐसा ही अपमानित होना पड़ता है? मेरी गलती शायद यही है कि मैंने सच कहा। सोनू की तरह झूठ नहीं बोला। यह झूठ नहीं कहा कि मैं भी कई-कई बार कलकत्ता और कई कई बार आगरा देख चुका हूँ। उस सोनू के बच्चे को देखो, उसके बाप ने भी कभी नैनीताल देखा है? कहता है, सर, मैं नैनीताल घूम चुका हूँ। और उसके झूठ पर कोई नहीं हँसा। मैंने सच कहा तो सब हँस रहे हैं! बत्तीसी दिखा रहे हैं!
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