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Aadhunikta Ke Hashiye Mein Urvashi

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2025
978-93-95226-83-7

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इस समीक्षा-कृति का प्रथम संस्करण सन् 1977 में प्रकाशित हुआ । यों तो इस कृति का प्रणयन लेखन ने स्नातकोत्तर कक्षा में अध्ययन करते हुए लघु शोध-प्रबन्ध के रूप में किया था किंतु जिस गहराई और मनोयोग से आधुनिकता की कसौटी पर उर्वशी का मूल्यांकन किया गया है वह उसे दिनकर पर प्रस्तुत अब तक के समीक्षा-ग्रन्थों में अत्यंत उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित करता हैं । उर्वशी के काव्यानुभव और शिल्प की बुनावट की गंभीर पड़ताल करते हुए आधुनिकता के विविध पक्षों की भी गंभीर विवेचना की गयी है। डॉक्टर नगेन्द्र और डॉक्टर निर्मला जैन के उर्वशी विषयक साक्षात्कार इस कृति को अतिरिक्त वैशिष्ट्य प्रदान करते हैं। फलतः ‘आधुनिकता के हाशिये में ‘उर्वशी’ दिनकर-काव्य के अध्येताओं के बीच बराबर लोकप्रिय बनी रही। छियालीस वर्षों बाद इस महत्त्वपूर्ण समीक्षा-कृति का प्रकाशन करते हुए हम हर्ष और संतोष का अनुभव कर रहे हैं ।

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