Mishrabandhu
About Mishrabandhu
मिश्रबंधु नाम के तीन सहोदर भाई थे, गणेश बेहारी, श्याम बेहारी और शुकदेव बेहारी। ग्रंथ ही नहीं एक छंद तक की रचना भी तीनों जुटकर करते थे। इसलिये प्रत्येक की रचनाओं का पार्थक्य करना कठिन है। आदिकाल |मिश्र बंधुओं ने 1913 में मित्र बंधु विनोद लिखा ए चार भागों में विभाजित था प्रथम तीन भाग 1913 में तथा चतुर्थ भाग 1934 में प्रकाशित हुआ था इन्होंने काल विभाजन किया कवियों का मूल्यांकन किया एवं सापेक्ष महत्व दिया साहित्य की विभिन्न विधाओं पर प्रकाश डाला||
मिश्रबन्धु कात्यायन गोत्रीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। 'मुहूर्त चिंतामणि' (ज्योतिष ग्रंथ) के प्रणेता चिंतामणि मिश्र इनके पूर्वज थे। इनके पूर्वजों का वासस्थान भगवंतनगर (जिला हरदोई, उत्तर प्रदेश) था। बाद में वे इंटौजा (जिला लखनऊ) चले आये जहाँ मिश्रबंधुओं का बाल्यकाल बीता। गणेशबिहारी (जन्म संवत् 1922) को हिंदी, संस्कृत और फारसी की शिक्षा घर पर ही मिली। दो विवाह हुए। दोनों से दो पुत्र हुए। ये लखनऊ डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के सदस्य और उपाध्यक्ष भी रहे। श्याम बिहारी (जन्म संवत 1930) को एम0 एम0 तक की उच्च शिक्षा मिली। 11 वर्ष की उम्र में विवाह हुआ। तीन पुत्र हुए। इन्होंने डिप्टी कलक्टर और डिप्टी कमिश्नर जैसे प्रशासकीय सरकारी पदों पर काम किया। इनका पहला लेख 'सरस्वती भाग' 1 में 'हमीर हठ' विषयक समालोचना का निकला। रायबहादुर शुकदेवबिहारी (जन्म संवत 1935) को भी बी0 ए0 तथा वकालत तक की शिक्षा मिली। इन्होंने पहले वकालत की शुरुआत कन्नौज में की, फिर लखनऊ चले आए। तत्पश्चात् वे मुंसिफ, दीवान और सबजज हुए। सभी ने हिंदी स्वाध्याय से ही सीखी। सभी बड़े विद्याव्यसनी, उदार, स्वतंत्रचेता और मिलनसार थे। विलायत भी हो आए थे।
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