• New product

Hindi Navratan

(0.00) 0 Review(s) 
2022
978-93-92380-01-3

Select Book Type

Earn 8 reward points on purchase of this book.
In stock

इस ग्रंथ का साहित्य के इतिहास से बहुत घनिष्ठ संबंध है, अत: उचित समझ पड़ता है कि इस स्थान पर, केवल दिग्दर्शन की तरह, उसका भी थोड़ा–सा सारांश दिया जाय । बंगाल और दक्षिण को छोड़कर प्राय: समस्त भारतवर्ष की मातृभाषा हिंदी है । इसके कवि सभी जगह हुए हैं, और सभी स्थानों पर इसका मान रहा है । कवि की पदवी भी इतनी ऊंची है कि मनुष्य महाराजाधिराज होने पर भी कवि होने में अपना गौरव समझता है । जापान के महाराज मत्सुहितो मिकाडो भी राजकाज से समय निकालकर नित्य कुछ कविता करते थे । महाराजाओं की कवि बनने की लालसा से हिंदी–साहित्य का बड़ा उपकार हुआ, और हो रहा है । कविता करनेवाले कुछ तो ऐसे होते हैं, जो शौकिया, बचे हुए समय में, करते हैं, पर अपना प्रधान कार्य मुख्य रूप से किया करते हैं । ऐसे लोग संसार के सभ्य देशों में बहुत हैं: पर यथेष्ट उत्साह रहने पर भी ये लोग परमोत्कर्ष काव्य–रचना नहींं कर पाते । दूसरे प्रकार के मनुष्य वे होते हैं, जो व्यापार मानकर कविता करते हैं, यही उनकी जीविका का साधन है । ऐसे लोगों के लिए कविता ही सब कुछ है, और वे लोग बहुत अधिक काम कर सकते हैं । पर उनकी जीविका के दो ही उपाय हो सकते हैं, अर्थात् या तो वे अपने ग्रंथों की बिक्री से गुजर करें, या किसी राजा–महाराजा का आश्रय लें । जब तक भारत में प्रेस न थे, तब तक ग्रंथों की बिक्री से जीविका चलना सर्वथा असंभव था! परंतु आज प्रेस के होने पर भी जीविका इस प्रकार नहींं चल पाती, क्योंकि भारत में इतने शिक्षित मनुष्य नहीं हैं कि किसी उत्कृष्ट ग्रंथ की भी इतनी प्रतियाँ बिक जाएँ कि कवि की गुजर–बसर उसी के लाभ से हो सके । इंगलैंड में विद्या का प्रचार बहुत दिनों से यथेष्ट है; पर वहाँ भी ऐसा समय थो -मिश्र बंधु

You might also like

Reviews

No Reviews found.