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'Amola' Ki Kisuli

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2018
978-93-87187-38-2

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त्रिलोचन जितने आत्मनिष्ठ और रूपनिष्ठ कवि हैं उतने ही जनपदनिष्ठ कवि । बल्कि उनके यहाँ आत्मनिष्ठा और जनपदनिष्ठा अनिवार्यत: सम्पुंजित सी हैं : एक में दूसरा और तीसरा बरबस अन्त/र्वनित होते हैं । यह त्रिलोचन को एक अनोखा मूर्धन्य बनाती है । उनकी कविता को पढ़ना–गुनना त्रिलोचन के जनपद को पढ़ना–गुनना है । उनके अवधी में लिखे गये इस काव्य को अधीत सुकवि अष्टभुजा शुक्ल ने मनोयोग और अ/यवसाय से सम्पादित किया, शब्दार्थ और सन्दर्भ दिये और एक लम्बी सुचिन्तित भूमिका लिखी है । यह पुस्तक त्रिलोचन का एक नया अपेक्षाकृत अल्पज्ञात रूप सामने लाती है । हमें इसे प्रकाशित करते हुए विशेष प्रसन्नता है । -अशोक वाजपेयी

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Reviews
अमोल की किसुली" एक खूबसूरत कहानी है जो प्यार, नुकसान और आत्म-खोज की बात करती है। इस किताब ने मुझे भावनाओं के पूरे स्पेक्ट्रम का अनुभव कराया। पात्र बहुत ही भरोसेमंद हैं और आप उनकी यात्रा का हिस्सा बनना चाहते हैं। यह निश्चित रूप से एक ऐसी किताब है जिसे मैं दूसरों को सुझाऊंगा।
Ramu, Jaisalmer