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'Kitne Shahro Mein Kitni Baar' Mein Chitrit Parivesh

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2017
978-93-82553-73-1

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सुपरिचित कथाकार ममता कालिया की कृति ‘कितने शहरों में कितनी बार’ के वैयक्तिक एवं पारिवारिक संदर्भ तथा सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक परिवेश को रेखांकित करने के निमित्त लिखित अपनी पुस्तक मेें लेखिका एल– विजयलक्ष्मी ने आलोचकीय दृष्टि से विवेच्य कृति को संस्करण साहित्य में स्थापित किया है । यहाँ एक ओर तो हिंदी साहित्य की कथेतर विधाओं में संस्मरण के स्वतंत्र अस्तित्व को प्रस्तुत किया गया है तथा दूसरी ओर संस्मरण के रूप में ममता कालिया के रचनाकार व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक बनाने के लिए उनके कृतित्व के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को आलोकित किया गया है । ममता कालिया के जीवन से जुड़ी हुई और उनके संपर्क की खट्टी–मीठी यादों को सँजोऐ यह कृति किस प्रकार और क्यों पाठकों के लिए अब भी प्रेरणास्पद है, यह बताते हुए एल– विजयलक्ष्मी ने शोध के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कार्य संपादित किया है । इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले शोधार्थियों और स्त्री सशक्तीकरण के समर्थक पाठकों के लिए यह पुस्तक एक प्रभावशाली रचना है । इसमें संदेह नहीं । ---प्रो. ऋषभदेव शर्मा 208–ए सिद्धार्थ अपार्टमेंट्स, गणेश नगर रामंतपुर, हैदराबाद–500013 (तेलंगाना) rishabhadeosharma@yahoo.com मोबाइल : 08121435033

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