Ramesh Gautam

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About Ramesh Gautam

प्रो. रमेश गौतम (1950-2021)
पूर्व अध्यव, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
जीवन पर्यंत शिक्षण-संस्थान (LLL) दिल्ली विश्वविद्यातव
नाट्यान्त्रोदना सामान्य स्यहित्यिक पाठों की आलोचना से अलग है। इसमें एक ओर लिख पाठ और उसके अधों को पाठकों तक संप्रेषित करना होता है तो दूसरी ओर प्रदर्शनकारी कता होने की वजह से उस आलोत्तमा का एक सिरा दर्शक समुदाय से जुड़ता है। रंग चिंतक रमेश गौतम ने जिस सभ्य नाट्य आलोचना के क्षेत्र में हस्तक्षेप किया, उस वक्त विचारधारा केंडित व्लोधना ही नाट्य समीत में उपस्थित थी पर बिना किसी वैचारिक पूर्वाग्रह से प्रभावित हुए रमेश गौतम ने एक सशक्त हस्ताक्षर के तौर पर रंग आलोचना में सुव्यवस्थित और निश्पक्षता के सुविधारित मापदंडों के लय कदम बढ़ाए। सेतो रमेश गौतम की आलोचना के केंद्र में समूचा भास्तीय नाट्‌य और रंग जगत शाषित रहा पर उन्होंने भारते और जयशंकर प्रसाद के नाटकों को अपने वितन में शिशामिल किया। रमेश गौतम बेहतर नाट्य आलोचक के साथ एक विज्ञान अध्यापक रहे। नाट्य आलोक के रूप में रमेश गौतम पिछले चार दशकों में काफी सक्रिय के नाटकों के पति की बातना देशका के अनुकूल निरंतर विकसित होते हुए देखा जा सकता है। कहने को तो कहते है कि नाट्य देश-कालातीत होता है लेकिन सच्चाई यह है कि काव्येषु नाटक यह तभी बनता है, उन यह देश का भी हो, काल का भी हो और देशका के परे भी हो। रमेश गौतम यह गारी-भाँति जानते थे कि नंद नाड्य में हमेशा भीज रूप में किया रहता है और रंगकर्म अपने अत रूप में बीज से हो प्रन्ावित करता है अपने देशकाल की अलग-अलग रोशनी, मिट्टी और पानी में।

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