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75 Kavitayen : Shamsher Bahadur Singh
भाग दो से भी रचनाएँ ली गई हैं। अतः जो रचनावली नहीं पढ़ पाए हैं ऐसे बहुत सारे पाठक इन कविताओं को पहली बार पढ़ेंगे। यह संचयन पहले के संचयनों से बेहतर है अथवा नहीं-इसका निर्णय तो पाठक करेंगे, पर हाँ, यह पूर्व के सभी संचयनों से एकदम अलग है-इतना तो तय है। रचनावली के दूसरे भाग में शमशेरजी की कविताएँ शामिल करते हुए मैंने लिखा था कि सम्भव है इनमें से अनेक कविताएँ शमशेरजी स्वयं शामिल करते या नहीं मैं नहीं जानती, पर चूंकि रचनावली का प्रकाशन कवि के जाने के बाद हुआ है, अतः उनकी पांडुलिपियों में जो सारी कविताएँ या 'वर्कशॉप कविताएँ' मिलीं, उन सभी को इसमें शामिल किया है। इस भाग की कविताओं में ऐसी अनेक कविताएँ मिलीं हैं जो कवि के आन्तरिक भाव विश्व को नई पहचान, नया स्वाद देती हैं। यह बात सर्वविदित है कि शमशेरजी चित्रकार भी थे। उनकी कविताओं में चित्र की वही भूमिका रही जो शब्द की रहती है। अर्थात् सृजन का फोर्स अगर शब्द गढ़ने में अभी तैयार नहीं है तो बात रेखांकन से आरम्भ करते हैं-जैसे 'घनीभूत पीड़ा' कविता में। शमशेर जी की कविताओं का परिचय ऐसी कविताओं के बिना अधूरा है। इसके अलावा भी कुछेक कविताओं को शामिल किया है। ये वो कविताएँ हैं जिनका चित्रांकन भी शमशेरजी ने किया है। जैसे 'एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता', शंख-पंख आदि। अपनी माँ को याद करते हुए शमशेरजी इतने भावुक हो जाते थे कि ऐसा लगता मानों अभी कुछ समय पहले ही वे उन्हें छोड़ कर गई हों। जबकि शमशेरजी ने अपनी माँ को नौ साल की उम्र में खोया था। वे कहते थे कि उनकी माँ उन्हें चित्रकला सीखने के लिए पेरिस भेजना चाहती थीं।
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