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Balak Apni Prayogshala Mein (Bhag 2)
लेखक का निवेदन कहने के लिए बच्चे सबको प्यारे होते हैं। पर उनके साथ होते आये अन्याय को देखते हुए नहीं कहा जा सकता कि बालक सचमुच हमें प्यारे हैं। उनके कान छेदना, गले में कंठे-तोड़े डालकर उन्हें तकलीफ पहुँचाना, हाथ-पाँव में चाँदी-सोने की हथकड़ी-बेड़ी डालकर मोहभरे प्यार के नाते उन्हें तकलीफ देना कैसे प्यार में शामिल किया जा सकता है? सबसे बड़ी बात यह है कि हम उन जानदार बालकों से बेजान चीजों को महत्त्व दे बैठते हैं। हवा बेजान चीज है, हमारे जीवन के लिए बड़ी महत्त्वशाली है। उसके बिना हम एक मिनट भी नहीं रह सकते। फिर भी वह बालक से बड़ी नहीं है। हवा हमें जीवित नहीं रखती। हम हवा से काम लेकर जीवित रहते हैं। हवा मुर्दे में जान नहीं डाल सकती। लेकिन आदमी हवा को मुर्दे के फेफड़ों में पहुँचाकर उसे फिर जिन्दा कर सकता है। और बालक आदमी ही का तो बच्चा है, इसलिए वह हवा से बड़ा है। हवा अगर देवता है, तो भी उसे हमारी और हमारे बच्चे की सवारी में रहना होगा। इसी तरह पानी और आग के देवताओं को भी हमारी सेवा करनी होगी। उन देवताओं के नाम पर चींटी जैसे तुच्छ प्राणी को भी बलिदान करना मूर्खता है। आग, पानी, हवा की तरह ही सरस्वती यानी विद्या भले ही देवी के नाम से पुकारी जाए, उसे हमारी दासी बनकर रहना होगा। यही हाल शक्ति और अन्य देवी-देवताओं का होगा।
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