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Bhagwandas Morwal : Chuni Hui Khaniyan
चुनी हुई कहानियाँ के अन्तर्गत कथाकार भगवानदास मोरवाल की बारह कहानियों को शामिल किया गया है । इन कहानियों को हम काल क्रम की दृष्टि से देखें तो ये 1987 से लेकर 2005 अर्थात लगभग दो दशकों के संचित लेखकीय अनुभवों का सार हैं । दूसरे शब्दों में कहूँ तो भगवानदास मोरवाल की ये कहानियाँ, गाँव–देहात और वहाँ से चलकर शहर में आकर बनते एक नव मध्यवर्गीय व्यक्ति और बदलते समाज की वे अभिव्यक्तियाँ हैं, जो उसके जातिगत समाज, अपने घर–परिवार और निज से उपजी विषमताओं से पैदा हुई हैं । मेरी दृष्टि में ये कहानियाँ लेखक के अतीत का ऐसा आईना है जिसमें बनते एक बड़े कथाकार के भिन्न रूपों और छवियों को देखा जा सकता है । जिनमें इनके कुछ उपन्यासों के आरम्भिक सूत्र और बीज भी मिल जाएँगे । एक तरह से उन कहानियों को उपन्यासों का पूर्वाभ्यास भी कहा जा सकता है । बल्कि इनमें उसकी प्रतिबद्धता के अलग–अलग रूपों और समय–समय पर होनेवाले विचलनों में मजबूती के साथ हाशिए पर कर दिए गए उपेक्षितों और वंचितों के साथ उसे खड़ा हुआ भी पाएँगे । उदाहरणस्वरूप महराब, सौदा, दु:स्वप्न की मौत और बियाबान कहानी को इस श्रेणी में रख सकते हैं ।
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