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Bhakt Prahalad
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी, 1899 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषा नामक देशी राज्य में हुआ । वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गाँव के निवासी थे । निराला जिस दिन जन्मे, उस दिन बसंत पंचमी थी । इस दिन जन्म लेने के कारण निराला खुद को सरस्वती पुत्र कहा करते थे । परम्परागत शिक्षा हाईस्कूल तक प्राप्त कर सके । निराला को कई भाषाओं का ज्ञान था । बांग्ला, अंग्रेजी और संस्कृत पर समान रूप से अधिकार रखने वाले निराला ने हिंदी कविता के ‘छंद के बंध’ खोल दिए । आजीविका के लिए कभी संपादन का कार्य किया तो कभी अनुवाद का । स्वतंत्र लेखन ही अर्थार्जन का आधार रहा । 1922–23 ई. में ‘समन्वय’ (कलकत्ता) पत्रिका का सम्पादन किया । फिर 1923 में ‘मतवाला’ मंडल में शामिल हुए । कलकत्ता छोड़ा तो लखनऊ आए, जहाँ गंगा पुस्तकमाला कार्यालय और वहाँ से निकलनेवाली मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 ई. के मध्य तक सम्बद्ध रहे । 15 अक्टूबर 1961 को इलाहाबाद में उनका निधन हुआ । प्रमुख कृतियां : काव्य–संग्रह : अनामिका, परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नये पत्ते, अर्चना, आराधना, गीत कुंज, सांध्य काकली, अपरा (संचयन) । उपन्यास : अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, कुल्ली भाट, बिल्लेसुर बकरिहा, चोटी की पकड़, काले कारनामे (अपूर्ण), चमेली (अपूर्ण), इन्दुलेखा (अपूर्ण) । कहानी संग्रह : लिली, सखी, सुकुल की बीवी, चतुरी चमार, (सखी’ संग्रह की कहानियों का ही इस नये नाम से पुनर्प्रकाशन ।) अनुवाद : रामचरितमानस (विनय–भाग), (खड़ी बोली हिन्दी में पद्यानुवाद), आनंद मठ (बाङ्ला से गद्यानुवाद), विष वृक्ष, कृष्णकांत का वसीयतनामा, कपालकुंडला, दुर्गेश नन्दिनी, राज सिंह, राजरानी, देवी चैधरानी, युगलांगुलीय, चन्द्रशेखर, रजनी । श्रीरामकृष्णवचनामृत (तीन खण्डों में) परिव्राजक, भारत में विवेकानंद, राजयोग (अंशानुवाद), रचना–समग्र : निराला रचनावली (आठ खण्डों में) ।
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