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Bhanumatee
पाठकों से मुझे कुछ कहना है असमिया उपन्यासकार पद्मनाथ गोहाञिबरुवा (जन्म 1871-मृत्यु 1946) के "भानुमती' को असमिया भाषा का पहला उपन्यास माना जाता है। पद्मनाथ गोहात्रिबरुवा ने कलकत्ता से 'बिजुली' नामक एक असमिया पत्रिका का संपादन किया था। इसी पत्रिका में सन् 1890-91 ई. के कई अंकों में इस उपन्यास को प्रकाशित किया था। पुस्तकाकार यह उपन्यास सन् 1908 ई. में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास को आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है। इस उपन्यास में परंपरा के विरुद्ध व्यक्तिवाद की विजय चित्रित है। इसमें अठारहवीं शताब्दी का काल खंड लिया गया है। यह असम में ऐतिहासिक मोवामरीया विद्रोह का काल है। मोवामरा मठ के भक्तों को मोवामरीया कहा जाता था। इन लोगों ने आहोम राजाओं के विरुद्ध विद्रोह किया था। यह जन विद्रोह था। इस विद्रोह के कारण राजधानी पर से दो बार आहोम राजाओं का अधिकार छिन गया था। इसमें आहोम राजा शिवसिंह के एक मंत्री के पुत्र और राजा शिवसिंह के ही एक अधिकारी की कन्या 'भानुमती' के बीच की प्रेम कहानी को वाणी दी गयी है। हिंदी के भगवतीचरण वर्मा द्वारा रचित 'चित्रलेखा' उपन्यास की तरह इसमें भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि लिया गया है। पर चित्रलेखा की तरह इसमें भी एक काल्पनिक कथा ही है। इसमें लेखक अपने समय के असमिया समाज को चित्रित करते हैं, भले ही पृष्ठभूमि ऐतिहासिक है। अतः इसे एक सामाजिक उपन्यास ही माना जाता है। लेखक के समय तक अंग्रेजों और अंग्रेजी शिक्षा से संपर्क के कारण असमिया समाज में इहलौकिकता और व्यक्तिवाद की प्रवृत्ति का प्रवेश हो गया था। यह दो तत्त्व 'भानुमती' में सन्निविष्ट हैं। और इसी कारण इस लंबी कथा को उपन्यास माना गया है।
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