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Bhartiya Itihas Aur Filmen
इस विरासत के आरंभिक युग में चलचित्र की फ़िल्म नाईट्रेट के मसाले पर आधारित होती थी जो अति ज्वलनशील रासायनिक मिश्रण होता था और मामूली सी गर्मी पर ही लपट पकड़ लेता था जिसके कारण फ़िल्म के गोदामों में अक्सर आग लग जाती थी और पलक झपकते में अमूल्य विरासत राख के ढेर में तब्दील हो जाती थी । सुना जाता है कि कई गोदामों में रखे रखे या एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेजाते समय यह अनमोल ख़ज़ाने जलकर बर्बाद हो गए । विरासत की सुरक्षा में इसी चूक के कारण नवकेतन की फ़िल्म “अफ़सर” (1951) की चंद रीलें ही विनाश के हाथों से बचाई जा सकीं । निर्देशक केदार शर्मा और उस्ताद झंडे खाँ का कालजई चलचित्र “चित्र लेखा”(1941) निर्माता के संबंधितों ने अच्छी हालत में पुणे के राष्ट्रीय फ़िल्म आर्काइव को सौंपा था मगर उसके बाद फ़िल्म का कुछ पता नहीं चला । सुरेन्द्र व बिब्बो अभिनीत महबूब खाँ की शाहकार फ़िल्म “मन मोहन” (1936) की चंद रीलें उपलब्ध हैं मगर पूरी फ़िल्म नहीं मिलती । निर्देशक चेतन आनंद की कालजई रचना “नीचा नगर” को बिमलरॉय के एक सहायक ने कोलकाता के एक रद्दी वाले के कबाड़ से ढूंढकर निकाला था । ---शरद दत्त (फ़िल्म इतिहासकार) ---- भूमिका से
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