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Bhasha Ka Kavyamay Sansar Aur Mahadevi Verma
रचना एवं रचनाकार की सफलता पाठक एवं श्रोता निर्धारित करते हैं । इस के अन्तर्गत रचना के भावों की एवं पाठक अथवा श्रोता की मानसिक स्थिति पर भी विचार किया जाता है । इस कसौटी पर महादेवीजी खरी उतरती हैं । महादेवीजी की कल्पना में रंगे हुए भाव हमारे मन के तारों को झंकृत करने में सफल हैं । मैं समझती हूँ कि भावों के विस्तार के लिए व्याकरण के बन्धनों में जकड़े रहना असंभव है । शायद इसलिए महादेवीजी ने उनकी रचनाओं को आवश्यकतानुसार जगह–जगह पर बन्धनमुक्त किया है । —इसी पुस्तक से
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