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Bhasha, Prayukti Aur Anuvad
महात्मा गाँधी , चक्रवर्ती राजगोपालाचारी से लेकर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस तक सबने एक मत से स्वीकारा है कि हिन्दी भारत की अभिव्यक्ति का समर्थ मा/यम है । हिन्दी भाषा को प्रशासन, संचार, जन–मा/यम और ज्ञान–विज्ञान के विभिन्न अनुशासनों की भाषा बनना वर्तमान समय की माँग है । इससे जहाँ एक ओर रोजगार की सम्भावनाओं में अभिवृद्धि होगी वहीं दूसरी ओर हिन्दी के भाषिक–अनुप्रयोगों का विस्तार भी होगा, साथ ही भाषा का एक ऐसा संस्कार भी दृढ़ होगा जो भाषायी एवं सामाजिक समरसता लाने में एक प्रमुख तत्त्व बनेगा । सौभाग्य से आज हिन्दी को विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषाओं में अग्रगण्य स्थान दिया जा रहा है । यह स्थान हिन्दी ने युग–युगान्तर में विकास के विविध चरणों में क्रमश' अर्जित किया है । शास्त्रीय भाषाओं के उत्तराधिकार से सम्पन्न, सैकड़ों जन–बोलियों की अधिष्ठात्री हिन्दी की हैसियत इतनी अभिव्यक्तिक्षम है कि वह न सिर्फ ज्ञान–विज्ञान के सीमान्तों का स्पर्श कर सकी है वरन् विश्व के विकास की गति से होड़ करती हुई अद्यतन विषयों, अनुसंधानों और तकनीकी–विकास को सम्प्रेषित कर सकी है । प्रस्तुत पुस्तक में भाषा, भाषा–प्रयुक्ति और अनुवाद के अंत'सम्बन् को सार्थक ढंग से दर्शाया गया है । अनुवाद आज की सर्वाधिक चर्चित विधा है । अनुवाद भाषा का महत्त्वपूर्ण आधार स्तंभ है । यह महत्त्वपूर्ण भाषाई प्रक्रिया है । हिन्दी में तकनीकी, व्यावसायिक, सूचनापरक और साहित्यिक सभी प्रयुक्तियों के स्तर पर अब अनुवाद अनिवार्य हो गया है । सरकारी कार्यालयों मंे द्विभाषी नियम लागू होने उपरान्त अनुवाद का एक नया चेहेरा उभरकर सामने आयाय कार्यालयी भाषा–प्रयुक्ति का एक नया स्वरूप सामने आया ।