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British Upniveshvaad Aur Bhartiya Pratirodh : Bhawani Dayal Sanyasi - Dakshin Africa ke Sarvajanik Karyakarta (Vol. 2)

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संन्यासी जी को जानने का सबसे बड़ा आधार उनकी आत्मकथा ‘प्रवासी की आत्मकथा’ है जो आजादी के साल ही आर्य युवक सभा, दक्षिण अफ्रीका द्वारा डरबन से प्रकाशित हुई थी । यह आत्मकथा उन्होंने भयंकर बीमारी की छाया में दो साल में पूरी की जो उन्हीं के शब्दों में दरअसल, “प्रवासी भारतीयों की दुर्गति की गाथा है । प्रवासियों की कथा इतनी करुणापूर्ण है कि कहने में वाणी थर्राती है, लिखने में लेखनी काँपती है । समुद्र की लहरों को चीरकर उनकी आहें जब यहाँ पहुँचती हैं और मेरे कानों में पड़ती हैं, तो हृदय व्यथा से भर आता हैµसिर धुनकर रह जाता हूँ । व्यथित हृदय को जरा–सा धक्का भी असह्य होता है, पर यहाँ तो चोट पर चोटें लग रही हैं । यदि हृदय चीरा जा सकता तो उसे चीरकर दिखा देता कि व्यथा का भण्डार बन गया है ।”

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