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British Upniveshvaad Aur Bhartiya Pratirodh (Vol. 1)
‘स्वदेश’ का ‘विजयांक’ सन 1923 में विजयादशमी के अवसर पर प्रकाशित हुआ था । ‘मिरात–उल–अखबार’ पर प्रतिबन्ध के एक सौ साल बाद आज से एक सौ साल पहले । प्रकाशन के साथ इस अंक को जब्त कर लिया गया । यह भी एक साप्ताहिक पत्र था और संपादक थे पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ । शंखनाद की निर्भीक पत्रकारिता का आलम यह था कि इसमें अंग्रेजों की चालबाज़ी और कुटिलता पर निबंध और समाचार छपते थे । ऐसे विज्ञापन छपते थे कि, “ब्रिटिश बैंकों तथा बीमा कंपनियों में रुपया लगाना साँप को दूध पिलाना है । ब्रिटिश राज भारत में व्यापार ही के लिए टिका है । ब्रिटेन तमाम अत्याचार व्यापार के लिए ही कर रहा है ।” वायसराय बहिष्कार सप्ताह मनाने का हौसला ‘शंखनाद’ के पास ही था । ‘स्वदेश’ के ‘विजयांक’ के लगभग चार साल बाद ‘सैनिक’ के संकलित अंक ब्रिटिश साम्राज्यवाद के कोपभाजन के शिकार हुए । आगरा से प्रति बुधवार को प्रकाशित होने वाला यह साप्ताहिक इस मूल मंत्र की प्रस्तावना के साथ प्रकाशित होता था- कमर बाँध कर, अमर समर, में नाम करेंगे । सैनिक हैं हम, विजय स्वत्व–संग्राम करेंगे । प्रतिबन्ध के लिए ये दो बाते ही पर्याप्त थीं । सैनिक नाम से 1857 की दुर्गन्ध उनके लिए स्वाभाविक थी ।
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