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Charitra Rekha
द्विवेदी जी की ‘अनुभूति’ और श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र का अन्तर्जगत् छायावादी युग की बड़ी देन है । जिस समय छायावाद को लेकर हिन्दी में घनघोर आन्दोलन छिड़ा हुआ था, उस समय नये स्कूल को स्थापित करने के लिए जितने भी लेख प्रकाशित किये जाते थे, उनमें ‘अनुभूति’ की कविताओं का उद्धरण अनिवार्य रूप से रहता था । वैयक्तिता छायावाद की सबसे बड़ी स्वभावगत विशेषता थी और उसका रसमय परिपाक द्विजजी की कविताओं में बहुत आरंभ में ही हो चुका था । नयी चेतनाओं को सबसे पहले हृदयंगम कर लेनेवालों में अनुभूति’ के कवि का प्रथम स्थान था । पंत जी की ‘मौन निमंत्रण’ और द्विज जी की ‘अथि अमर शान्ति की जननी जलन’ कविताएँ हिन्दी में कितनी बार और कितने प्रसंगों पर उद्धृत हुईं, यह गिनती के बाहर है । ‘अन्तर्जगत्’ और ‘अनुभूति’ की कविताओं को पढ़ने से यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि प्रेम का घाव संसार में सबसे सुन्दर और सबसे भयानक चीज़ है । इस घाव से मनुष्य का हृदय ही नहीं, उसकी आत्मा भी फट जाती है और ज्यों–ज्यों इसका विस्तार बढ़ता है, त्यों–त्यों मनुष्य भी गहरा और विस्तीर्ण होता जाता है । —रामधारी सिंह ‘दिनकर’
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