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Dehati Duniya

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2025
978-93-48650-84-3

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इस पुस्तक के जीवन के साथ एक छोटा-सा इतिहास लगा हुआ है। वात ऐसी हुई कि मैंने आज तक जितनी पुस्तकें लिखीं, उनकी भाषा अत्यन्त कृत्रिम, जटिल, आडम्बरपूर्ण, अस्वाभाविक और अलंकारयुक्त हो गई। उनसे मेरे शिक्षित मित्रों को तो सन्तोष हुआ, पर मेरे देहाती मित्रों का मनोरंजन कुछ भी न हुआ। देहाती मित्रों ने यह उलाहना दिया कि तुम्हारी एक भी पुस्तक हमलोगों की समझ में नहीं आती-क्या तुम कोई ऐसी पुस्तक नहीं लिख सकते, जिसके पढ़ने में हमलोगों का दिल लगे? मैंने उसी समय अपने मन में यह बात ठान ली कि ठेठ देहाती मित्रों के लिए एक पुस्तक अवश्य लिखूँगा। यह पुस्तक उसी का परिणाम है! मुझे यह स्वीकार करने में तनिक भी संकोच नहीं है कि उपन्यास लिखने की शैली से मैं विल्कुल अनभिज्ञ हूँ। फिर भी मैंने जान-बूझकर इतना बड़ा अपराध कर ही डाला; इसलिए क्षमा-प्रार्थना करने का साहस तो बिल्कुल न रहा जो दण्ड मिलेगा, सिर चढ़ाऊँगा; क्योंकि इस पुस्तक के लिखते समय मैंने साहित्य-हितैषी सहृदय समालोचकों के आतंक को जबरदस्ती ताक पर रख दिया था। यदि मैं ऐसा न करता, तो अपनी ही अयोग्यता के आतंक से इतना त्रस्त हो जाता कि इस रूप में यह पुस्तक कभी नहीं लिख सकता।

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