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Ek Ladki Banjaran
‘‘बहुत–बहुत बधाई, जन्मदिवस की । तुम जियो हमारों साल, साल के दिन हो पचास हजार––––अवाज से पहचान रही हो न ?’’ यही है एक व्यक्ति, जो मिसेज गिरिबाला मेहता को ‘‘आप’’ नहीं कहता । उससे बातें करना जैसे पुराने दिनों में लौटना है । ‘‘जरूर पहचान रही हूँ, लेकिन यह झूठी शुभकामना तो न दीजिए ।’’ ‘‘झूठी कैसी ?’’ ‘‘यही, हजार बरस जीने वाली बात ।’’ ‘‘ओ हो! ठीक कहा,’’ उधर से हँसी की आवाज, ‘‘यह तो एक रस्म है । खैर, सच्ची शुभकामना दे रहा हूँ, तुम सत्तर बरस और जियो ।’’ ‘‘यह हुई न बात । धन्यवाद बधाई के लिए, आभारी हूँ । और उधर के क्या समाचार है ?समझ रहे हैं न ?’’ ‘‘छिटपुट खबरें मिलती रहती हैं । वही ढर्रा है, वे ही रस्म–रिवाज, वे ही धंधे ।’’ ‘‘मैं कई बार कह चुकी हूँ आप यहीं आ जाईए । वहाँ क्या रखा है । यहाँ आपके लिए बड़ा स्कोप है । मुझे भी मदद की जरूरत है । कई बातें ऐसी भी होती हैं, जिनके बारे में जिस तिस से सलाह देना कठिन हो जाता है ।’’ ‘‘मन बना रहा हूँ । मालिक को भी तो कुछ सहारा चाहिए, वह मुझी पर छोड़े निश्चित रहता है । कुछ अपना भी तो कर्त्तव्य उसके साथ है ।’’ ‘‘जल्दी बनाएँ मन या, कहूँ कि कहीं अमेरिका वाली बात के कारण तो नहीं ’हिचकिचा रहे हैं ?’’ ‘‘क्या कहती हो! मैं पहले ही कह चुका हूँ कि वहाँ तुमने जो किया, वह तो सब परिस्थितियों और तुम्हारे कर्त्तव्य की माँग थी । उसके लिए मेरे मन में रत्ती भर मलाल नहीं है । मैं तुम्हें अच्छी तरह पहचानता हूँ । तुम्हारे अंतरतम का एक अलग सुरक्षित कोना कहाँ है, वह भी समझता हूँ । कृपया इस बात का जिक्ऱ न करो ।’’ -इसी उपन्यास से
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