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Gorakhnath Aur Unka Yug

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2023
978-81-19141-14-2

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जो हो, योगी घरबारी और गृहस्थ भी होते हैं । जो योगी कान नहीं फड़वाते वे औघड़ कहलाते हैं । योगियों की एक विशेष वेशभूषा है जिसका आगे वर्णन किया गया है । ब्रिग्स और हजारीप्रसाद ने इसपर सविस्तार लिखा है । पं– सुधाकर द्विवेदी ने जायसी की पद्मावत का सम्पादन करते समय योगी वेश का वर्णन किया है और प्रत्येक योगी वेश की विशेषता का उल्लेख किया है । नि:सन्देह यह सज्जा एक अत्यन्त रोचक और आकर्षक रूप है । अब भी कनफटे योगी देश के भिन्न–भिन्न भागों में फैले हुए हैं । अनेक जातियों पर उनका प्रभाव है । उनके अनेक स्थानों पर मठ हैं । यह सब पुस्तक में वर्णित है । नाथ सम्प्रदाय को सिद्ध मत, सिद्ध मार्गय योग मार्ग, अवधूत मत, अवधूत सम्प्रदाय आदि के नाम से भी पुकारा जाता था । नाथ शब्द में ‘ना’ का अर्थ है अनादि रूप और ‘थ’ का अर्थ है (भुवनत्रय को) स्थापित करना ‘ना. सं.’ । नाथ सम्प्रदाय के कनफटों को दर्शनी साधु भी कहा जाता है । दर्शनियों में जो बिलकुल नंगे रहते हैं वे मद्य और मांस पीते और खाते हैं । कान की मुद्रा से ही उन्हें यह नाम दिया गया है । यह मुद्रा धातु या हाथी दाँत की होती है । सोना भी काम में आता है । मुद्राधारी ‘कुण्डल’ और ‘दर्शन’ दो नाम से ज्ञात है । दर्शन का सम्मान अधिक है । कुण्डल को पावित्री भी कहते हैं । नाथ सम्प्रदाय के विभिन्न योगियों ने विभिन्न मत चलाये हैं । कहा जाता है मत्स्येन्द्रनाथ ने चार सम्प्रदाय चलाये हैंµगोरखनाथी, पंगल या अरजनंगा (रावल), मीननाथ सिवनोर, पारसनाथ पूजा, अन्तिम दो जैन हैं । योगिसम्प्रदायाविष्कृति के अनुसार गोरक्ष के अनेक शिष्य थे जिन्होंने अपने सम्प्रदाय चलाए । जिनमें चर्पट उल्लेखनीय हैं । गृहस्थ योगियों से बयनजीवी जातियोंµताँती, जुलाहे, गड़रिये इत्यादि का अधिक सम्बन्ध पाया जाता है । जोगियों में हिन्दू और मुसलमान दोनों होते हैं । आजकल वे दुनियादारी के काम करते हुए भी पाये जाते हैं । ---'भूमिका’ से

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