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Himachal ki Lok Sanskriti
हिमाचल को देवभूमि के रूप में जाना जाता है। शिमला जिला के चौपाल क्षेत्र में चन्दाणो और बधाणों के मध्य हर वर्ष 'खिला-भड़ाच' नाम का एक खेल मेला दीपावली के दूसरे दिन बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह इस प्रकार का दुनिया में शायद अपनी प्रकार का अकेला मेला है। इस खेल को चन्द्राणो व बधाणो की दोनों विरादरियों के मध्य अपनी सैकड़ों वर्ष पुरानी भाईचारे की परम्परा को मजबूत बनाने के लिए प्रतिवर्ष खेला जाता है। इस खेल को शुरू करने के लिए 'शिरगुल' देवता की उत्पत्ति व स्थापना के कुछ वर्ष बाद के समयकाल को माना जाता है। 'शिरगुल' का जन्म सिरमौर जिला के शवगा (या शाया) नाम के गांव में लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व सम्भवतः उस काल को माना जाता है जब दिल्ली पर औरंगजेब का राज था। यह खेल चन्दाणो के परम्परागत गांव बटेवड़ी व बधाणो के वंशानुगत अन्य गांव शंठा के मध्य बाहलधर के आंचल में लारा गांव के समीप एक स्थल पर चौपाल तहसील के देवता गांव के बगल में शुरू होता है। यहां पर मन्दिर की भवन-निर्माण-शैली में वर्षा शालिका बनाई गई है जो खिला भड़ाच के पवित्र स्थल के रूप में जानी जाती है। इसका उपयोग खिला भड़ाच जातर के दिन शिरगुल देवता की पालकी की विश्रामस्थली के रूप में भी किया जाता है। खिला भड़ाच के दिन शिरगुल देवता की पालकी शंठा के लिए जातर की रात बटेवड़ी गांव से कूच करती है तो वह यहां इस स्थल पर रास्ते में विश्राम करती है और गंतव्य तक पहुंचने हेतु आगामी यात्रा पर उसी दिन सायंकाल खिला भड़ाच का खेल समाप्त होने पर प्रस्थान करती है। इस देवस्थली के समीप ही एक स्थल पर दो दिन पूर्व एक फुट लम्बा, एक इंच मोटा डण्डा गाड़ दिया जाता है। इस डण्डे को एक-दो इंच जमीन से बाहर रखा जाता है।
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