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Himanshu Joshi Ke Do Baal Upanyas
हंस कितने भले होते हैं! अपने बच्चों की तरह दूसरों के बच्चों को भी प्यार करते हैं । किसी से लड़ते–झगड़ते नहीं । सबके साथ स्नेह से रहते हैं । पर उनके बच्चे तो उनसे भी भले होते हैं । नन्हे हंस मुझे बहुत प्यार करते । मेरे साथ खेलते । आँख–मिचैनी करते । अपने पतले–पतले मुलायम पंखों से मुझे सहलाते । नन्ही–नन्ही चोंचों से चूमते । मेरे लिए कमल के ढेर सारे फूल इकट्ठा करके रख देते । कभी–कभी पानी में डुबकी लगाते, मेरे लिए मोती चुन लाते । मुझे बहुत दिन हो गए, वहाँ रहते । उनके साथ खेलते । खाते । दिन–रात मैं उन्हीं के साथ रहता । इसलिए धीरे–धीरे मैं उनकी भाषा भी समझ गया । मेरी नीली आँखें देखकर वे मुझे ‘नीलमणि’ कहा करते । एक दिन मैंने उन्हें बतलाया किµमेरा नाम नीलमणि नहीं ‘नीलाभ’ है तो वे खिल–खिलाकर हँस पड़े । ‘नीलाभ, तू यहाँ खुश है बेटा ।’ एक दिन हंसों के राजा ने मुझे पास बुलाकर पूछा । हंसों में जो बूढ़ा, सयाना–समझदार होता है, उसे वे अपना अगुवा बनाते हैं । जिसे ‘राजा’ भी कहा जाता है । अपने बच्चों की तरह सबकी सेवा करता है । हंसों का यह राजा बहुत बूढ़ा था । उसकी सफेद दाढ़ी थीµतिनके जैसी! मैंने कहाµ‘हाँ, दादा । मैं बहुत खुश हूँ । यहाँ सब लोग बहुत अच्छे हैं । मिल–जुलकर रहते हैं । दूसरों को सताते नहीं । सबको समान समझते हैं ।’ ‘हम क्या अच्छे हैं ? जंगल में रहते हैं । खुले में पड़े रहते हैं । हम गरीबों के पास और है क्या ?’ दादा ने गंभीर होकर कहा । -‘बौना तारा हंसों के देश में’ से अंश
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