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Hindi Bhasha Aur Sahitya
हिंदी साहित्य का इतिहास पहले–पहल शिवसिंह सेंगर ने लिखा था । उस समय न इतनी सामग्री ही उपलब्ध थी और न विवेचन का वर्तमान ढंग ही सम्मुख आया था । फिर भी इतना अवश्य कहा जा सकता है कि शिवसिंह सेंगर का उद्योग सर्वथा स्तुत्य था । उनके इसी ग्रंथ के आधार पर डाक्टर प्रियर्सन ने अँगरेजी में एक इतिहास लिखा था । इसकी विशेषता यह थी कि प्रमुख कवियों की कृतियों की साधारण समालोचना भी इसमें की गई थी । सन् 1900 ई. से काशी नागरी–प्रचारिणी सभा ने हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों की खोज का काम आरंभ किया । इसके आधार पर तथा स्वतंत्र रूप से भी विशेष सामग्री का संचय करके मिश्र–बंधुओं ने तीन बड़े–बड़े भागों में ‘मित्रबंधुविनोद’ नाम का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखा । यह ग्रंथ बड़े परिश्रम, खोज और अभ्यवसाय से लिखा गया था । हिंदी साहित्य का विवेचन करनेवाले के लिये यह ग्रंथ बहुत आवश्यक और उपयोगी है । इसके बिना उसका काम नहीं चल सकता । आनंद की बात है कि अब इसका दूसरा संस्करण भी निकल गया है और उसमें यथा–स्थान परिवर्धन और संशोधन भी किया गया है । मिश्रबंधु–विनोद के आधार पर मिस्टर की ने अँगरेजी में हिंदी साहित्य का एक छोटा सा इतिहास लिखा है । इसे हम मिश्रबंधु–विनोद का संक्षिप्त संस्करण कह सकते हैं । मिस्टर ग्रोव्स ने भी हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन एक पुस्तिका के रूप में कराया है । इसकी विशेषता यह है कि मिस्टर ग्र्रोव्स ने अपने स्वतंत्र विचारों से काम लिया है । इसके अनंतर पंडित रामचंद्र शुक्ल लिखित हिंदी साहित्य का इतिहास निकला है । अब यह मेरा ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है । प्रश्न किया जा सकता है कि इतने ग्रंथों के रहते हुए भी मेरे इस इतिहास की क्या आवश्यकता थी । इस इतिहास के प्रस्तुत करने में मेरा उद्देश्य कवियों की कृतियों का अलग–अलग विवेचन करना नहीं है । मैंने प्रत्येक युग की मुख्य–मुख्य विशेषताओं का उल्लेख किया है और यह दिखाने का उद्योग किया है कि साहित्य की प्रगति किस समय में किस रंग की थी । इस विचार से यह अन्य इतिहासों से भिन्न है और यही इसके प्रस्तुत करने का मुख्य कारण है ।
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