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Hindi Bhasha Aur Sahitya Ka Itihas
इस ग्रन्थ में मैंने अपने पूर्ववर्ती और समकालीन प्रायः सब हिन्दी इतिहास-लेखकों की प्रचलित परम्परा का उल्लंघन करके अपने कुछ नये ऐतिहासिक दृष्टिकोण निर्धारित किये हैं, और उनके समर्थन में इतिहास की सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि की रेखाएँ दी हैं। मैं नहीं जानता कि विद्वज्जन कहाँ तक मेरे इस प्रयास की दाद देंगे। मेरा सदैव ही यह विश्वास रहा है कि साहित्य मानुष-अंग का पृष्ठवंश है। मानुष का जीवन, जीवन की गति और उसकी संक्रान्ति साहित्य पर ही आधारित हैं। इसलिए मैंने साहित्य को इस ग्रन्थ में अधिकाधिक व्यापक रूप दिया है। मैं ललित साहित्य के फेर में नहीं पड़ा। भाषा और लिपि को मैं साहित्य का वाहन मानता हूँ अतः मैंने ग्रन्थ में उनका भी यत्किचित् परिचय दे दिया है तथा साहित्य पर भाषा से असम्बद्ध एक व्यापक विहंग दृष्टि डाली है। विवादास्पद विषयों को मैंने गवेषणा करने वाले विद्वानों के लिए छोड़ दिया है, और जहाँ विद्वानों के भिन्न मत हैं, वहाँ बहुमत का अनुसरण किया है, कुछ नयी बातों का भी समावेश कर दिया है। मुझे भय है कि मेरे प्रमाद और अज्ञानता के कारण बहुत-सी त्रुटियाँ और भूलें ग्रन्थ में रह गयी होंगी। कुछ साहित्यिकों और कवियों के विवरण छूट गये होंगे, कुछ के विवरण-वृत्त अशुद्ध और भ्रमपूर्ण छप गये होंगे। इसके लिए उन सब ज्ञात और अज्ञात साहित्य-जनों एवं विद्वज्जनों से मैं बद्धांजलि क्षमाप्रार्थी हूँ। इस सम्बन्ध में जब भी मुझे अपनी भूलें मालूम होंगी मैं अविलम्ब उनका निराकरण करूँगा। - चतुरसेन
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