• New product

Hindi Cinema Ke Haasy Abhineta

Select Book Type

In stock

इंसान के जीवन में सुख और दु:ख के पल अक्सर आते हैं और इनको विभिन्न कलाओं में दर्शाया जाता रहा है । हिंदी सिनेमा भी इससे अछूता नहीं है । वर्षों से हम देखते आए हैं कि जिन फिल्मों का अंत दुखांत होता है उनमें भी दर्शकों के मनोरंजन के लिए हास्य की डोज डाल दी जाती है । नाटकों में भी हास्य कलाकारों का रोल अहम होता है और हास्य कलाकारों ने इस परंपरा को समृद्ध बनाया है । मूक फिल्मों में भी हास्य कलाकारों को प्रमुखता दी जाती थी । टॉकीज के आने के बाद तो इस चलन में और वृद्धि हुई । पचास का दशक कॉमेडी का स्वर्णकाल माना जाता है । जॉनी वाकर अपने निराले अंदाज के लिए लोकप्रियता के शिखर पर पहुँच गए । उनकी लोकप्रियता के कारण उन्हें कुछ फिल्मों में बतौर हीरो भी साइन किया गया । किशोर कुमार हरफनमौला थे उन्होंने गायन और कॉमेडी दोनों में नाम कमाया । महमूद ने इस विधा को नए आयाम दिये । उन्होंने कई तरह की भूमिकाएं निभार्इं और अपनी कॉमेडी के दम पर वह हीरो से ज्यादा पारिश्रमिक और क्रेडिट लेने लगे । राजेंद्रनाथ, असरानी, केश्टो मुखर्जी ने भी इस परंपरा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । उस दौर में कॉमेडी का जादू हिंदी फिल्मों में सर चढ़कर बोल रहा था । सत्तर के दशक में अभिनेता अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, संजीव कुमार और गोविंदा जैसे नायकों ने कॉमेडी रोल करने शुरू कर दिये । खलनायकों में कादर खान, अमजद खान, अमरीशपुरी, शक्ति कपूर और गुलशन ग्रोवर ने भी अपने लिए कॉमेडी रोल लिखवाये । ऐसा नहीं कि कॉमेडी में सिर्फ पुरुष पात्रों का एकाधिकार था । यशोधरा काट्जू, मनोरमा, टुनटुन, शोभा खोटे और इंद्रा बंसल ने भी कॉमेडी में हाथ आजमाये ।

You might also like