- New product
Hindi Cinema Ke Kuch Jane-Anjane Fankar
पहले मूक फि’ल्मों का ज़माना था दादा साहब फाल्के ने 1913 में मूक फि’ल्म राजा हरिश्चन्द बनाई थी परन्तु 1931 में फि’ल्म “आलम आरा” बनने के बाद बोलती फि’ल्मों का दौर आरम्भ हुआ और अब चलचित्र हमारे मनोरंजन का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम बन गया है । हिंदी फि’ल्म निर्माण उद्योग ने अपनी आयु के सौ वर्ष पूरे कर लिये हैं । दादा साहब फाल्के ने कठिन परिस्थितियों में आज से सौ वर्ष पूर्व भारत की धरती पर जो एक छोटा–सा पौधा लगाया था वह आज एक घने वृक्ष के रूप में लहलहा रहा है । उसकी शाखायें पूरे देश में हिंदी, उर्दू ही नहीं बल्कि कई स्थानीय भाषाओं जैसेµबंगाली, मराठी, पंजाबी और तमिल इत्यादि की फि’ल्मों की शक्ल में फैली हुई हैं । देश के विभिन्न भागों में फैले हुए कलाकार जिनमें लेखक, अभिनेता, संगीतकार, तर्क, चित्रकार, निर्देशक इत्यादि कला के क्षेत्र में अपने देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपनी विशेष पहचान बना रहे हैं । इस पुस्तक में हिंदी सिनेमा की विभिन्न विधाओं के कलाकारों के जीवन में उनकी सफ’लताओं, असफलताओं, उत्थान व पतन का विवरण दिया गया है जिससे यह अच्छी तरह विदित हो जाता है कि आरंभ में ग़ैर–शरीफ’ाना समझे जाने वाले इस पेशे ने किस तरह उन्नति करके समाज के एक महत्त्वपूर्व व सम्मानजनक व्यवसाय का रूप धारण किया और हमारे जीवन का एक अंग बन गया ।
You might also like
No Reviews found.