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Hindi Cineyatra : Cinema Takneki Aur Naye Madhyam

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2025
978-93-48650-00-9

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कला की भारतीय अवधारणा बहुत ही समृद्ध रही है। इतिहासकार भगवत शरण उपाध्याय लिखते हैं "ललित आंकलन कला है। कालिदास ने 'ललिते कलाविधे' का जो 'रघुवंश' में उल्लेख किया है, वह इसी प्रसंग में है। अभिराम अंकन चाहे वह वाग्विलास के क्षेत्र में हो, चाहे राग रेखाओं में, चाहे वास्तुशिल्प में, वह कला है। प्रकृति जो देती है वह कलाकार नहीं देता। न कलाकार प्रकृति का यथावत रूपायन करता है। यह काम छाया शिल्पी या फोटोग्राफर का है, कला प्रकृति को अपनी दृष्टि से देखती है। कलाकार दृश्य में पैठकर प्रायः उससे एकीभाव होकर उसे देखता है, सिरजता है। वह प्रकृति को अपनी तूलिका, छेनी अथवा लेखनी से संवार देता है। नंगी प्रकृति स्थिति में कलावन्त, जो अपने माध्यम से अन्तर डाल देता है, वही कला है। प्रकृति रात बनाती है कलावन्त दीप बनाता है।"'

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